पंख कटे पांखी
पंख कटे पांखी लेकर
हमने स्वप्न सजाये हैं
इस शून्य आकाश में
हमने भी घर बनाये हैं।।
पंछी होते तो उड़ लेते
या कर लेते हम आखेट
हर डाल पर है शिकारी
पल पल सिसके साकेत
युद्धवर्त जीवन सदा
हमने रचे हैं महाभारत
द्रोपदी की अस्मिता का
मूंद नेत्र, आह! स्वागत।।
ऐतिहासिक है द्वंद्व यहाँ
नर, खग, पक्षी अनेक
आचरण, आखेट में वत्स
मन से पराजित विवेक।।
सूर्यकान्त