‘ पंकज उधास ‘
ग़ज़लों का बादशाह , ऐसी एक ग़ज़ल बना गया
मेरे सामने ही सामने वो , धरा से आसमां में छा गया !!
चिठ्ठी आयी थी कभी , मेरे नाम की तेरी आहाट से
अब तो डाकिया भी कहता, लिखने वाला ही चला गया !!
बहुत सुना था तुम्हे , दिलो दिमाग पर था राज तुम्हारा
वकत ने कर दिया रुखसत, बस सन्नाटा सा छा गया !!
कितनी शिद्दत से गुनगुनाया करता था ,तुम्हारी ग़ज़लें
कहीं दूर से सुनते ही आवाज, मेरा दिमाग लड़खड़ा गया !!
पंकज उधास के सुर, जब छिड़ जाते थे मंच पर
वाह वाह करने वालों का, तब सैलाब सा आ गया !!
कहते थे, निकलों न बेनकाब जमाना खराब है
सच कहा था, अब तो वो खराब जमाना ही है आ गया !!
कितनी सच्चाई थी शब्दों में , क्या कलम थी आपकी
अब कहाँ खोजेंगे , कलम संग लिखने वाला ही खो गया !!
मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि , जहाँ भी हो स्वीकार कीजिये
अब तो बस यादों में मिलेंगे, समझेंगे दीदार हो गया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ