न लिखना जानूँ…
न मैं कवि,न लिखना जानूं,
न छंदों का ज्ञान।
किया कराया सब तेरा प्रभ,
जग मोहें देता मान।
न शैली,न सुंदर वर्णन,
लेख में न ही वजन।
तुम लिखते हो पर जग कहता,
क्या खूब लिखा ‘सृजन’।
मैं कहता हूं तू सब करता,
सदा तेरा ही मान।
नहीं नामवर बनना मुझको,
मैं खुश बन नादान।
रहूं ओट ले तेरी बाबा,
हुक्म में स्वांस बिताऊँ।
नाम जपूँ जब तक जीवन है,
अंत में चरण समाऊं।