न रौशनी है मोहब्बत की तीरगी पाई
बला की आज की दुनिया में मुफ़लिसी पाई
न रौशनी है मोहब्बत की तीरगी पाई
मिली न कोई भी मंज़िल सुकून क्या मिलता
चले हैं राह कोई आपकी कमी पाई
तलाश ख़ूब किया है गली-गली ढूंढ़ा
मेरे मकान में बैठी थी ज़िन्दगी पाई
अजीब शह्’र था लोगों के दिल भी पत्थर थे
वहाँ न मैंने ख़ुशी की कोई घड़ी पाई
यक़ीं भले न करे कोई ये मगर सच है
के सर पे माँ की दुआ है तो हर ख़ुशी पाई
पहाड़ से वो चली थी मिलन की आस लिये
बह रही थी बहुत तेज़ जो नदी पाई
चला है दौर ये फैशन का इसमें मुश्किल से
फकीर सा था कोई जिसमें सादगी पाई
गिरे हैं पल भी कहीं दूर मुझसे जाकर के
तलाश जब भी किया इक नई सदी पाई
ख़ुशी मिली है कटोरा लिये ज़माने में
किसे बताए भी ‘आनन्द’ क्या ख़ुशी पाई
– डॉ आनन्द किशोर