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22 Jun 2023 · 1 min read

न मुमकिन है ख़ुद का घरौंदा मिटाना

न मुमकिन है ख़ुद का घरौंदा मिटाना
उसी पर महल कोइ दूजा बनाना

बहुत कोशिशें की न बरसे ये आँखें
मगर जोर मुझ पर मिरा ही चला ना

किसी शाख से पत्तियाँ छूट जाए
बदल डालता है परिंदा ठिकाना

ज़रा भी न बदली मुहब्बत तुम्हारी
हरिक बात पर ये निगाहें झुकाना

हमारी झुकी ये नज़र ना उठाओ
बहुत रो चुके हैं न तुम डूब जाना

@शिल्पी सिंह बघेल

1 Like · 513 Views
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