न मुमकिन है ख़ुद का घरौंदा मिटाना
न मुमकिन है ख़ुद का घरौंदा मिटाना
उसी पर महल कोइ दूजा बनाना
बहुत कोशिशें की न बरसे ये आँखें
मगर जोर मुझ पर मिरा ही चला ना
किसी शाख से पत्तियाँ छूट जाए
बदल डालता है परिंदा ठिकाना
ज़रा भी न बदली मुहब्बत तुम्हारी
हरिक बात पर ये निगाहें झुकाना
हमारी झुकी ये नज़र ना उठाओ
बहुत रो चुके हैं न तुम डूब जाना
@शिल्पी सिंह बघेल