न बन बादल कोई भरा
ऐ जिन्दगी ये तो बता
तू कहाँ से चली और कहाँ पे रूकी
एक बेहोशी के आलम यहाँ सभी
कब हम थे जागे?
कशमोंकश के राहों पर
कसमसाते से रहे,
कई रातों का अन्धेरा बने
उङती रंगीनियों में
अरमां के बादल कब ये छटे,
हैरान हुये वीरानियों को देखकर
ठहाकों के फिर भी महफिल
इस जहाँ में खूबसूरत सजे
कहीं खामोशियों की आवो हवा
झड़ रहे थे कही सोनल सूखे पत्ते,
फूल था कोई मुस्कराता
खुशबू थी रवाँ रवाँ
पथ सजे थे पथिक से झ्स कदर
मंजिल का न पर कोई नामोंनिशां
मिल गई कुछ दिशाओं से
कुछ पेड़ों को थोड़ी हवा,
माली खुश हुआ
कुछ तो जिन्दा है यहाँ,
बह रहे नदी सा कहीं रुका रूका
दूर से आती कहीं दिल से सदा
न बन बादल कोई भरा
उङ जा हल्का हो बरस के यहाँ सदा।
….…………………..पूनम कुमारी