—- न बन नादान रे पगले —-
कर ले प्रभु का गुणगान रे पगले
न बन तो नादान रे पगले
न यह तन तेरा , न यह धन तेरा
कुछ तो बन इंसान रे पगले !!
कितना भी कमा ले तू रात दिन
सब यही रह जाना है
छोड़ के इस तन और धन को
मिटटी में ही मिल जाना है !!
कर ले कर्म जिन को साथ जाना है
न कर कोई गुमान रे पगले
मोहा माया के फेर में न जीना
यहाँ सब है मतलब के पगले !!
जब तक हैं साँसों का बंधन
तब सब सब ने साथ निभाना है
जहाँ टूटी यह सांस की माला
दो दिन में तुझे सब ने भुलाना है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ