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24 Aug 2020 · 1 min read

न ढूंढ

मेरी शायरी मे यार मुहब्बत न ढूंढ
हुस्न और इश्क़ की लज़्ज़त न ढूंढ ।
महरूम हैं मेरे शेर जलवाए महबूब से
ज़िक्र तू यहाँ हसिनाए खूबसूरत न ढूंढ।
मत कर नेताओं के वादों पर भरोसा
सहरा में यार समंदर की फितरत न ढूंढ ।
रहने दे मासूमों की मासूमियत महफ़ूज
इनकी आँखों में अभी से नफरत न ढूंढ ।
फ़िर न होगी अजय मुझसे ज़ुर्मे मुहब्बत
कहे दिल मुझसे कोई ऐसी ज़ूर्रत न ढूंढ ।
-अजय प्रसाद

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