— न टूटे रिश्ते कभी किसी के —
बड़ी तमन्नाओं के साथ जाकर
कहीं मिलते हैं दो घरों के रिश्ते
बड़े अरमानो के साथ विदा
होती हैं घर से जब सब बेटियाँ !!
चन्द दिन तो गुजरते हैं
आवभगत और प्यार दुलार में
न जाने कहाँ से पैदा होती है
कडवाहट इस प्यार दुलार में !!
किस बात पर बढ़ जाती हैं तकरारें
न जाने क्या घट जाता है
न जाने किस की नजर में यूं ही
बनाने लग जाती हैं फिर दीवारें !!
कहीं सास-ससुर , कहीं ननंद , कहीं जेठ-जेठानी
कहीं पति से हो जाती हैं तकरारें
बात बात पर ताने देकर फिर बुलाने
लग जाती हैं घर की भी दीवारे !!
बन जाती है इतनी खाई कि संभलती नही
होने लगती है रुसवाई की झिलती नही
जितने अरमान लेकर जाती हैं घर से बेटियाँ
वो वापिस फिर जीने के काबिल दिखती नही !!
काश ! हर रिश्ता रिश्तों की तरह चले
सब के जीवन में बहार बन के खिले
बाबुल के घर से जाने के बाद बेटियाँ
वापिस लौट के रोते हुए ऐसे कभी न आयें
कि वो तानों की वजह से जिन्दगी गुजार न पाए !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ