न जाने तुम कहां चले गए
न जाने तुम कहां चले गए,
इस जहां में अकेला छोड़ गए।
आंसुओ ने भी न साथ दिया,
वे भी बहकर अब चले गए।।
भरती थी जो सिन्दूर मांग में,
वो भी पोंछ कर अब चले गए।
खनकती थी जो चूड़ियां हाथों में,
वो भी तोड़ कर तुम चले गए।
बजते थे जो बिछुवे पैरो में,
वो भी साथ लेकर चले गए।
एक सुहागन को विधवा कर गए,
न जाने तुम अब कहां चले गए।।
दिन मुश्किल से अब कटता है,
रात भी बिल्कुल कटती नहीं।
जो सलवटे पड़ती थी चादर पर,
वो भी अब कही पड़ती नही।
जो दिन रात काटे थे सकून से,
वो सकून अब कही मिलता नही।
इस सकून को लेकर चले गए,
न जाने तुम अब कहां चले गए।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम