” न जाने क्या है जीवन में “
विधाता क्या तेरे मन में
न जाने क्या है जीवन में
रहूँगा क़ैद पिंजड़े में
या उड़ जाऊंगा उपवन में
मिलेगा कोई उजड़ा वन
या छू लूंगा गगन को मैं
विधाता ………………….
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गिरा गहरे समंदर में
न मर जाऊं मैं पलभर में
बचायेगा तु आकर के
या रह जाऊंगा दलदल में
विधाता ………………….
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कोई उड़ा न ले जाए
हमें तूफ़ान बनकर के
बवंडर में न फंस जाऊं
भला इंसान बनकर के
विधाता ………………….
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मेरी बस आरज़ू इतनी कि
मेरे साथ रहना तुम
मैं सह जाऊंगा हर एक ज़ुल्म
आपका दास बनकर के
विधाता ………………….
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•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)