न जाने क्या खता हमसे हुई ।
न जाने क्या खता हमसे हुई कि वो रूठ से गए
मानो अंदर ही अंदर कुछ टूट से गए।
हमने लाख कोशिश की मनाने की मगर वो नहीं माने।
क्या इतनी बड़ी सजा देता है कोई जो हुई गलती अनजाने ।
वह खुद तो गए मगर हमसे हमी को ले गए
जाते-जाते सिर्फ गुड बाय मात्र कह गए।
अब मुझ में मैं नहीं बस तन्हाई बाकी है।
अब बस यह बाकी जिंदगी मानो उजड़ी सी झांकी हैं।
उन्होंने जो मुंह मोड़ा हमसे सारी खुशियों ने मुंह मोड़ लिया।
मानो पूनम के आसमान से चांद को ही किसी ने तोड़ लिया।
हर पल हर लमहे में उनकी कमी खलने लगी है।
मानो इस सीने में कहीं एक आग जलने लगी है।
दिन का चैन रातों की नींद सब छीन गया
लगता है ऐसा कि उनके बिना मैं कुछ अधूरा सा रह गया।
उनके संग बीते हर पल दिल में भाले से चुभते हैं।
उनकी यादों की आग में हम दिन–रात सुलगते हैं।
क्या करूं क्या कहूं कि वह मान जाए
इस दिल के दर्द को वह जान वो जान जाए।
जान जाए कि कितना प्यार हम उनसे करते हैं,
उन्हीं के लिए जीते हैं और उन्हीं के लिए मरते हैं।
कैसे यकीन दिलाऊं उनको ऐसी गलती अगली बार नहीं होगी।
अब हमारे प्यार की सुबह की कभी शाम नहीं होगी।
हम जिएंगे उनके लिए और उनके लिए ही मर जाएंगे।
खुद को खो कर भी हम उनको पाएंगे हम उनको पाएंगे ।
H G SUTHAR