न जाने क्या क्या कहता दिल
सुन,
किया करता है आजकल ,
खुद से ही अनगिनत वादे,
न जाने क्या क्या कहता दिल।
कहता है आऊँगा मैं,तपते जलते सहरा में,
बनके घटा श्यामल और सघन।
तेरे पतझड़ से जीवन में छाऊंगा ,
बनके रंगीँ सी बासंती पवन।
हृदय,उपवन सा तेरा महकेगा,
खुशी से भीगेगा मन ज्यों सावन।
अजब सी मदहोशी में आजकल ये रहता है,
न जाने क्या क्या हमसे है कहता दिल।
कहता छा जाऊँगा मैं,अधर्म के क्रूर तम में
बनकर प्रेम प्रीति का मैं मधु आलोक
बिलखते तड़पते रोते घनिष्ठ अवसाद में
बनके श्वासों का चारु उल्लास अशोक।
सुन, तेरी चाहत में न जाने क्या क्या कहता दिल।
कहता भा जाऊँगा, मैं ऐसा गीत गाऊँगा ।
अंतर्मन के काले सन्नाटे में,दिव्य रौशनी बनके फैलूंगा।
हूं सृजन रागिनी का और हूं मैं सप्त सुरी सरगम।
बिगड़ी बनाऊँगा मैं,वो प्रीति मंत्र तुम्हें सुनाऊँगा
ऐसे ही अनवरत प्रवाह में बहता रहता दिल।
न जाने क्या क्या देख कहता दिल।
कहता चाहे हो पर्वत अंचल गिरी शैल दुर्गम
विपदाएँ खाएंगी पछाड़, और तोड़ेंगी दम।
संजीवनी है तेरी मुस्कान खिलती गुलाबी अधरों पर
तेरी चाहत है इबादत और मेरे प्यार का अमोल उपहार।
न जाने क्या क्या कहता है ये दिल नीलम
बांटदे तू खुशी तो, इसके कुछ कम हों ग़म।
नीलम शर्मा