न चाहिए
हिन्दुस्तानी ग़जल
221/2121/1221/212
दिल ने कहा इनाम मोहब्बत न चाहिए।
बेशक रहे तु दूर शिक़ायत न चाहिए।
खैरात आप पास रखो मेरि जानिजां
तू ख्वाब ही सही कि हकीकत न चाहिए
है अंजुमन मगर न हमारा यहां जगह
हूं ठीक बेशुरा कि नज़ाकत न चाहिए।
मुझको न चाहिए सर पे ताज साथियों
है वावफा हालाकि हुक़ूमत न चाहिए।।
शायद लगा उसे कि वही रश्क ए क़मर है।
दीपक कहा सही कि अदालत न चाहिए।
©® दीपक झा रुद्रा