न का मतलब न ही होता है
न का मतलब फिर न ही होता है
न का मतलब हाँ नहीं होता
अगर ….अगर हमने किसी पुरुष से मित्रवत बात कर ली
तो अर्थ यह नहीं निकलता की – हमारी कोई आसक्ति है उस पुरुष पे ,
मान रहा …हाँ ..हाँ आज भी ये समाज यही मान रहा
की एक नारी यदि किसी पुरुष से बात की पहल करे
तो वो निर्लज्ज …चरित्रहीन है
अरे ओ चरित्र के ठेकेदारों –
पहले खुद को भी देख लो –
बीवी हो या प्रेमिका लेकिन समर्पण उनके प्रति न होगा
हर दर पे झुक जाने का हुनर ज़रूर होगा
जैसे किसी शास्त्र में लिखा हो
की जीवन जीने के लिए एक औरत काफी नहीं है ,
हमारी स्थिति तो ये है की –
पुरुषों की गाली बिना हमारे पूरी नहीं होती
झगड़ा होगा दो पुरुषों का
लेकिन एक दूसरे की माँ -बहन – बेटी को गलियां दे देगा
और दूसरा पहले की माँ – बहन – बेटी को घसीट देगा ,
मैं पूछती हूँ की –
कहाँ गयी वो वेदों की वाणी ??
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ”
सब बस अब कहने की बातें हो गयीं ,
हम किसी पुरुष की ज़रा सी तारीफ़ क्या कर दें
उसको तो हम उसके मालिकाना हक़ के अंतर्गत नज़र आने लगते हैं ,
बात बहुत साफ़ है
जैसे तुम्हे जीने का अधिकार है मुझे भी है ,
ये ज़रूरी नहीं की मैंने तुमसे बात कर ली
तो तुम ख़ुद को मेरे जीवनसाथी
या ख़ुद को मेरा राँझा समझने लगे
तुम मेरे मित्र भी हो सकते हो
तुम मेरे भाई भी हो सकते हो ,
अगर मैंने मान सम्मान मर्यादा का ध्यान रक्खा है
तो तुमको भी मुझसे द्विअर्थी बातें करने का अधिकार नहीं ,
माना की मेरे मानस पटल पर भी किसी पुरुष का अधिकार है
लेकिन इसका अर्थ नहीं ये की –
हर पुरुष स्वयं को इसका अधिकारी समझे ,
मर्यादा का पाठ केवल हमें ही नहीं
तुमको भी पढ़ाया गया होगा
उस पाठ का ही एक पन्ना यह भी है –
नारी हर रूप में पूज्या है
चाहे वो माँ हो बेटी हो
पत्नी , बहन , दोस्त या प्रेमिका हो
तो अब तो समझ जाओ
न का मतलब न ही होता है
न का मतलब हाँ नहीं होता |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’