नज़्म/ बातें तुम्हारी यादें हमारी
जब तारें टिमटिमाते हैं
अँधेरी रातों में
………………तब
इत्तेफ़ाक़ से कभी कभी
मेरी नज़र चली जाती है
हाँ तुम्हारी याद हैं मेहमाँ
वक़्त बे वक़्त आ जाती हैं
भर आती हैं आँखें जानें क्यूं
कुछ अनमोल मोतियों से
छलकती हैं बारहाँ जानें क्यूं
हिसाब में कच्चा हूँ मैं बेशक़
फ़िर भी गिनने लगता हूँ तारें
याद कर करके सब बातों को
शोर दिल का सुनने लगता हूँ
मैं तारों में छुपाकर रखता हूँ
बातें सारी
अपने दिल में बसाकर रखता हूँ
बातें तुम्हारी……………
दो पँछी डाल पर जब
चोंच से चोंच लड़ाते हैं
जब ये पागल हवा के झोंके
फूलों को ख़ूब हंसाते हैं
जब जब नदी की धारा
किसी पत्थर से टकराती है
इक़ मधुर आवाज़ सी आती है
…….तब
तुम्हारी याद आती हैं
हाँ तुम्हारी याद हैं मेहमाँ
वक़्त बे वक़्त आ जाती हैं
काँटों में से फूल चुनने लगता हूँ
मैं ख़्वाबों में ख़्वाब बुनने लगता हूँ
फ़िर तकने लगता हूँ
चाँद को इस तरहा
तसव्वुर में पढ़ने लगता हूँ
वो दाग है ना चाँद में
अरे वही जिसे लोग दाग कहते हैं
बस उसे ही तकता हूँ बारहाँ
वो दाग नहीं तुम्हारी याद हैं
मैं चाँद में छुपाकर रखता हूँ
यादें सारी
अपनी आँखों में बसाकर रखता हूँ
यादें तुम्हारी…………..
~~अजय “अग्यार