नज़र नहीं आता….
आज कल हमको तू और तेरा इश्क नज़र नहीं आता!
तेरे असातिर से निकलने का रास्ता नज़र नहीं आता!
जो मिला ही नहीं आज तक वो हमारे तसव्वुर में था!
मुझमे भी तो अब ढुढ़ने का हौसला नज़र नहीं आता!
महसुस करता हूँ शायद बहुत खुबसुरत हैं खुदा मेरा!
फ़िर क्यूँ वो इतनी इबादत के बाद नज़र नहीं आता!
कब तक लड़ता रहूं मैं खुद से और बेवफ़ा ज़माने से!
मेरी आँखों में आँसूओ का सैलाब नज़र नहीं आता!
कड़वाहट भरी है मिलावट सी है दिलो के रिश्तो में!
रिश्ते तो हैं मगर उनमे अब गुमान नज़र नही आता!
मतलब पर ही तो पहचानते हैं ज़माने भर में लोग!
बेवज़ह तो अब इंसान भी इंसान नज़र नहीं आता!
#lafzdilse By Anoop S.