नज़र का खेल
नज़र का खेल
नज़र उठी-नज़र गिरी-नज़र मिलाकर ;
नज़र फड़की-नज़र मिली,नज़र हुई चार
नज़र की नज़ाकत का यह नाजूक नज़राना
नज़र का मंज़र बना एक मासूम-सा फ़साना
हया में नज़र आई मासूम-सी एक नजाकत,
राज़ छुपाने कई बहाने फिर भी नज़र मे मुहब्बत
नज़र मे चमके जैसे कोई बिजलियों का खज़ाना
लाख नज़र बचायें, दुश्मन जो है सारा ज़माना
महबूब के चहरे पे गुस्से की लहरें जब नज़र आये
सैलाब उल्फ़त का, दिल को चैन नज़र नहीं आये
दिल की नज़र से जिसने खेला यह नज़र का खेल,
नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकता नज़र का ताल-मेल !!
सजन