नक़ाब/चिलमन…एक अंतर
अजीब कशमकश में घिरी बैठी हूँ
समझ नही आता की मैं
कैसे कैसों में नीरी बैठी हूँ ,
ये जो चेहरे हैं मेरे चारों तरफ
पूरा यकीन है मुझे
पूरे जुमले हैं नही हैं ये हरफ ,
लब मेरे एक लफ्ज़ भी नही कह पाते हैं
इन चेहरों की हिमाक़त तो देखो
बिना सुने ही किस्सों मेंं बदल जाते हैं ,
गलती – दर – गलती ये कर रहे हैं
इतना बड़ा गुनाह ये करके
अपना चेहरा नक़ाब से ढ़क रहे हैं ,
ऐसा था तो ये ख़ता ना करते
फिर क्या बात थी जब ये अपना चेहरा
नक़ाब की जगह चिलमन से ढ़़कते ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/08/2020 )