न्याय सम्राट अशोक का
कुछ साल पहले की बात है। दिल्ली हाई कोर्ट के एक माननीय न्यायधीश रिटायर हो रहे थे। दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की तरफ से उनके सम्मान में एक पार्टी आयोजित की गई थी। जब माननीय न्यायाधीश महोदय अपने कार्यकाल का अनुभव प्रस्तुत कर रहे थे तो बातों बातों में उन्होंने एक कहानी सुनाई। ये कहानी बहुत हीं प्रासंगिक है। ये कहानी सम्राट अशोक से संबंधित है।
सम्राट अशोक यदा कदा रात को वेश बदलकर अपने राज्य का दौरा करते थे। वेश बदलकर राज्य का दौरा करने का मकसद ये था कि वो जान सकें कि उनके राज्य में उनके आधीन राज्याधिकारी प्रजा के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं?एक बार रात को वो अपना वेश बदल कर बाहर निकले। जब राज्य का दौरा कर वो वापस अपने महल में आए तो महल के दरवाजे पर खड़े दो द्वारपालों ने उन्हें रोक लिया।
जब सम्राट अशोक ने अपना परिचय दिया तब भी दोनों द्वारपाल नहीं माने। उन दोनों द्वारपालो ने सम्राट अशोक को बताया कि उनकी नियुक्ति अभी नई नई हुई है। वो सम्राट अशोक को नहीं पहचानते। इसलिए सम्राट अशोक को थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा।
एक द्वारपाल अपने उच्च अधिकारी से मिलने चला गया ताकि उचित आदेश ले कर आगे की कार्यवाही पूरा कर सके। रात्रि का पहर था, उच्च अधिकारी सो रहा था , इसलिए उसे जगाकर लाने में देरी हो रही थी।इधर सम्राट अशोक लंबे समय तक महल के दरवाजे के बाहर खड़े खड़े परेशान हो रहे थे। जब उन्होंने जबरदस्ती महल के भीतर जाने की कोशिश की तो द्वारपाल ने उन्हें धक्का दे दिया।
गुस्से में आकर सम्राट अशोक ने उस द्वारपाल की हत्या कर दी। जबतक उच्च अधिकारी दूसरे द्वारपाल के साथ महल के दरवाजे पर आया तबतक सम्राट अशोक के हाथ में रक्तरंजित तलवार और द्वारपाल का प्राणहीन शहरी पड़ा था। अगले दिन द्वारपाल की मृत्यु का समाचार चारो तरफ फैल गया। महल के एक एक अधिकारी को ज्ञात हो गया की द्वारपाल की हत्या सम्राट अशोक के हाथों हो गई है।
नियमानुसार सम्राट अशोक को हीं मामले की शुरुआत करनी थी। उस हत्या के मामले में तहकीकात करनी थी।लिहाजा उन्होंने उसी उच्च अधिकारी को मामले की तहकीकात करने की जिम्मेदारी सौंपी। सम्राट अशोक के पास असीमित ताकत थी। वो मामले को रफा दफा भी कर सकते थे। लेकिन उन्होंने असीमित शक्ति के साथ साथ अपनी जिम्मेदारी भी समझी। उन्हें पता था कि वो ही उच्च अधिकारी सही गवाही दे सकता है, इसलिए उसी को चुना।
जब मामले की तहकीकात कर लेने के बाद उच्च अधिकारी ने दरबार लगाने की मांग की , तब सम्राट अशोक ने नियत समय दरबार लगाया।उस भरे दरबार में उच्च अधिकारी ने पूरी घटना का वर्णन किया। और बताया कि उस द्वारपाल का हत्यारा सम्राट अशोक हीं है। हालांकि उस वध में सम्राट अशोक के साथ साथ अनेपक्षित परिस्थियां भी जिम्मेदार थी। सम्राट अशोक ने बड़ी विनम्रता के साथ उस आरोप को स्वीकार किया।
इस कहानी को सुनाकर माननीय न्यायाधीश ने बताया कि आजीवन उन्होंने अपने कोर्ट को वैसे हीं चलाया। ऐसा देखा जाता है कि मामले की सुनवाई के दौरान कुछ माननीय न्यायधीश अनावश्यक टिप्पणियां करते रहते है। एडवोकेट और पार्टी को अनावश्यक रूप से डांटते रहते हैं।ये उचित नहीं। एक न्यायाधीश के।सहिष्णु होना बहुत जरूरी है। यदि माननीय न्यायधीश डर का माहौल कर दे तो फिर एक तानाशाह और न्यायधीश में अंतर क्या रह पाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि न्यायधीश तो ऐसा होना चाहिए कि आम आदमी उसके पास आकर अपनी बात खुलकर रख रखे। यहां तक कि उसके खिलाफ भी बोल सके।एक न्यायधीश ईश्वर नहीं होता। फिर भी यदि ईश्वर के हाथों भी गलती हो जाती है तो फिर एक न्यायधीश की क्या औकात? एक न्यायधीश को न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अनावशक टिप्पणी करने से बचना चाहिए। और यदि अनावश्यक टिप्पणी करते हैं तो जनता की बीच उठी आवाज को सुनने को क्षमता भी होनी चाहिए।
माननीय न्यायाधीश ईश्वर तो होते नहीं। आखिर हैं तो ये भी एक इंसान हीं। यदि आप ईश्वर की तरह शक्ति और सम्मान चाहते हो तो। ईश्वर की तरह व्यवहार भी करो। हालांकि गलतियां ईश्वर से भी तो हो जाती है। तो ईश्वर की तरह असीमित धीरज भी तो रखो।कोई भी न्याय व्यवस्था से ऊपर नहीं हो सकता। यहां तक कि न्यायधीश भी। कौन नहीं जानता भगवान शिव को भी अपने वरदान के कारण हीं भस्मासुर से भयभीत होकर भागना पड़ा था। असीमित शक्ति बिना किसी जिम्मेदारी के अत्यंत घातक सिद्ध होती है।
उन्होंने आगे कहा, अपने न्यायिक जीवन में उन्होंने सम्राट अशोक के उसी न्याय व्यवस्था को अपनाया। अदालती।करवाई के दौरान अनावश्यक टिप्पणियों से बचने की कोशिश करना और यदि अनचाहे उनसे इस तरह की टिप्पणी हो गई हो तो उसके खिलाफ आती प्रतिरोधात्मक स्वर को धैर्य के साथ सुनना।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित