न्याय मासूम को (समसामयिक )
न्याय मासूम को (समसामयिक )
मुझे आक्रोश है
दरिन्दों पर
कहाँ जाती है
उनकी इन्सानियत
नेक ईमान
जब एक मासूम
को अस्मिता को
छलनी छलनी
करते है वो
तारीख पर तारीख
वकीलों की फौज
कानूनी दांव पेंच
बेहूदा प्रश्न
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
हाईकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट
दया की अपील
होते होते
नये दरिन्दे पैदा
हो जाते है
अरे कुछ
तो खौफ हो
दरिन्दों में
बयानबाज़ी
न्याय की बाते
बचाव की दलीलें
हौसले बढातीं है
दरिन्दों की
आक्रोश है
उन नालायक
औलादों पर
जो छोड़ देते हैं
बुढापे में
असहाय
माँ बाप को
आक्रोश है
समाज की
व्यवस्था पर
दहेज, भ्रष्टचार
अश्लीलता
रिश्वतखोरी
स्वार्थपरता
घटिया सोच पर
होगा जब हर
इन्सान आक्रोशित
तब सुधरेगा समाज
देश और व्यवस्था
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल