न्याय की राह
विजय नगर का सिटी हॉस्पिटल, शहर के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में से एक था। सफेद दीवारों से घिरे इस विशालकाय भवन में डॉक्टरों की एक बेहद दक्ष टीम काम करती थी, जिन पर लोगों की जान का भरोसा था। लेकिन, चमकती दीवारों और सफाई से चमचमाते फर्श के पीछे एक गहरा और घिनौना रहस्य छिपा हुआ था।
अस्पताल का वॉर्ड नं. 13, जो पुराने हिस्से में स्थित था, लगभग भूलभुलैया जैसा था। धूल से ढके कांच, सीलन की बदबू, और बेतरतीब से रखी हुई उपकरणों की अलमारियाँ, सभी यह बताते थे कि यह हिस्सा अब शायद ही उपयोग में लाया जाता था। लेकिन यही वह जगह थी जहाँ अस्पताल की सारी घिनौनी सच्चाई छिपी हुई थी।
डॉ. दीप्ति शर्मा, एक 26 वर्षीय युवा और होनहार ट्रेनी डॉक्टर, अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही सिटी हॉस्पिटल में आ गई थी। उसे अस्पताल के सीनियर डॉक्टरों के साथ काम करने का मौका मिला, जिसमें डॉ. राघव, अस्पताल के मेडिकल डिपार्टमेंट के हेड, प्रमुख थे। डॉ. राघव, दिखने में जितने सख्त और अनुशासनप्रिय थे, उतना ही उनका व्यक्तित्व रहस्यमय था।
दीप्ति, जो शुरू से ही चीज़ों की बारीकियों पर ध्यान देती थी, को एक दिन अस्पताल के रिकॉर्ड्स में कुछ अनियमितताएं महसूस हुईं। वह एक मरीज की फाइल पर काम कर रही थी जब उसने देखा कि मरीज की मृत्यु की रिपोर्ट और उसके इलाज के नोट्स में असंगतियां थीं। इस असंगति ने उसके अंदर एक सवाल उठाया।
रात के समय जब सभी लोग अपने-अपने घरों में सो रहे होते, दीप्ति उस पुराने हिस्से में जाकर रिकॉर्ड्स की जांच करती। एक रात जब वह गहराई से रिकॉर्ड्स खंगाल रही थी, तभी अचानक उसे एक पुरानी फाइल हाथ लगी। यह फाइल किसी रोहित शर्मा की थी। फाइल में दर्ज जानकारी ने दीप्ति को हिला कर रख दिया। मरीज की मृत्यु के बाद उसके अंगों की एक लंबी सूची उस पर लिखी हुई थी, जैसे वे किसी बाजार में बिकने के लिए तैयार हों।
“ये क्या है? इतने सारे अंग… और बिना किसी कानूनी दस्तावेज के…” दीप्ति ने खुद से बुदबुदाया।
दीप्ति को समझ आ गया कि वह जिस चीज का सामना कर रही है, वह साधारण मामला नहीं है। उसने अगले कुछ दिनों तक और अधिक रिकॉर्ड्स की जांच की। हर बार वह कुछ और फाइलें पाती, जो पहले की तुलना में और भी खतरनाक होतीं। उसे महसूस होने लगा कि यहाँ मानव अंगों की तस्करी का एक बड़ा नेटवर्क चल रहा है, और इसके पीछे कुछ बेहद शक्तिशाली लोग हो सकते हैं।
एक शाम, जब दीप्ति अपने शोध में गहरी डूबी हुई थी, तभी अचानक डॉ. राघव उसके सामने आ गए। उनके चेहरे पर एक अनहोनी की आशंका साफ झलक रही थी।
“डॉ. दीप्ति, क्या कर रही हैं आप यहाँ इस समय?” डॉ. राघव की आवाज में एक कड़वाहट थी।
दीप्ति ने अपने चेहरे पर संयम बनाए रखते हुए जवाब दिया, “कुछ फाइल्स चेक कर रही थी, सर। कुछ बातें समझ में नहीं आ रही थीं, तो सोचा खुद ही देख लूं।”
डॉ. राघव ने उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए कहा, “यह समय आपके काम का नहीं है। और वैसे भी, कुछ बातें समझने के लिए नहीं होतीं। छोड़िए इन्हें और अपने असाइनमेंट पर ध्यान दीजिए।”
दीप्ति ने उनकी बात को सुन लिया, लेकिन मन में उठे सवालों को शांत नहीं कर पाई। वह जानती थी कि डॉ. राघव कुछ छिपा रहे हैं, लेकिन क्या?
अगले कुछ दिनों में, दीप्ति को अस्पताल में अजीबोगरीब नज़रों का सामना करना पड़ा। जहाँ वह जाती, उसे ऐसा लगता कि कोई उसे देख रहा है। उसे धमकी भरे फोन कॉल्स आने लगे। एक रात, जब वह घर लौट रही थी, तो उसे एक अंजान आदमी ने रोका और धमकाया।
“बहुत ज्यादा जानने की कोशिश कर रही हो, डॉक्टर। अगर जान प्यारी है तो अपना काम करो, और जहाँ तक है वहीं छोड़ दो।”
दीप्ति को समझ में आ गया था कि वह एक खतरनाक खेल में फंस चुकी है। लेकिन वह डरने वाली नहीं थी। उसने तय किया कि वह इस मामले को उजागर करके रहेगी।
उसने सारे सबूत इकट्ठा किए और पेन ड्राइव में सेव करके पुलिस को सौंपने की योजना बनाई। लेकिन वह नहीं जानती थी कि जो लोग उसके पीछे हैं, वे उससे भी एक कदम आगे हैं। उस रात, जब दीप्ति अस्पताल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी, उसे चारों तरफ से घेर लिया गया। डॉ. राघव, डॉ. कपूर, डॉ. वर्मा, और नर्स रीना, जो अब तक उसके साथी थे, दरिंदों की तरह उसके सामने खड़े थे। दीप्ति ने भागने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे पकड़ लिया और एक सुनसान कमरे में ले गए, जहाँ अंधेरा और सीलन भरी बदबू फैली हुई थी।
कमरे के अंदर घुसते ही डॉ. राघव ने दरवाज़ा बंद कर दिया। दीप्ति का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने कोशिश की कि वह किसी तरह खुद को छुड़ा सके, लेकिन उन चारों ने उसे जकड़ लिया।
“क्या सोच रही थी तुम, दीप्ति? कि तुम हमारी सच्चाई दुनिया के सामने लाओगी और हम चुपचाप देखते रहेंगे?” डॉ. राघव की आवाज में एक क्रूरता थी।
“आप लोग ये क्या कर रहे हैं? मैं डॉक्टर हूं, आप लोगों ने ये घिनौना खेल क्यों शुरू किया?” दीप्ति ने कांपते हुए कहा। “यह खेल हमारे लिए बहुत लाभकारी है, दीप्ति। और तुमने इसमें टांग अड़ाकर बहुत बड़ी गलती की है।” डॉ. कपूर ने हंसते हुए कहा।
उन दरिंदों ने दीप्ति के साथ बलात्कार किया, और उसकी चीखें अस्पताल की दीवारों में गूंजती रहीं। वह दर्द से तड़पती रही, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं आया। जब उनका घिनौना काम खत्म हुआ, तो उन्होंने दीप्ति की हत्या कर दी। उसका शरीर अस्पताल के उसी पुराने हिस्से में छिपा दिया गया जहाँ उसने पहली बार उन फाइल्स को देखा था।
दीप्ति की आत्मा को शांति नहीं मिली। वह अस्पताल के उसी हिस्से में भटकने लगी जहाँ उसकी हत्या हुई थी। अस्पताल में अजीब घटनाएं होने लगीं। नर्सें और अन्य स्टाफ रात के समय दीप्ति की चीखें सुनने लगे। लोगों ने उसकी आत्मा को अस्पताल के गलियारों में घूमते हुए देखा।
डॉ. राघव, जो अब तक बेहद निडर और स्वार्थी व्यक्ति था, अब असहाय महसूस करने लगा। उसे समझ में आ गया था कि दीप्ति की आत्मा उसे चैन से नहीं रहने देगी। उसने तांत्रिक बाबा कालेश्वर को बुलाने का फैसला किया। बाबा कालेश्वर, जो काले जादू और आत्माओं को वश में करने के लिए जाना जाता था, ने राघव से वादा किया कि वह दीप्ति की आत्मा को हमेशा के लिए शांत कर देगा। बाबा ने पूरे अस्पताल का निरीक्षण किया और कहा, “यह आत्मा बहुत शक्तिशाली है, क्योंकि इसे बहुत दर्दनाक तरीके से मारा गया है। लेकिन चिंता मत करो, मैं इसे काबू कर लूंगा।”
बाबा ने हवन शुरू किया, और मंत्रोच्चारण करने लगा। लेकिन हवन के दौरान, अचानक दीप्ति की आत्मा प्रकट हुई। उसने बाबा को चेतावनी दी, “तुम मेरा कुछ नहीं कर सकते, बाबा। मेरे साथ जिसने भी अन्याय किया है, वह मरेगा।”
बाबा ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन दीप्ति की आत्मा ने उसके मंत्रों को तोड़ दिया। बाबा समझ गया कि यह आत्मा बहुत प्रबल है और इसके सामने उसकी ताकत कुछ नहीं है।
कुछ दिनों बाद, नर्स रीना, जो दीप्ति की हत्या में शामिल थी, अस्पताल के पुराने हिस्से में अकेली थी। उसने सोचा कि वह उस जगह को साफ करेगी ताकि दीप्ति की आत्मा शांत हो जाए। लेकिन जैसे ही वह वहां पहुंची, उसे अजीब सी ठंड महसूस हुई। अचानक उसे दीप्ति की आवाज़ सुनाई देने लगी, “तुम्हारी बारी आ गई है, रीना।”
रीना ने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई नहीं था। तभी उसे लगा कि कोई उसे पीछे से पकड़ रहा है। उसनेपीछे मुड़कर देखा तो रीना का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। दीप्ति की आत्मा उसकी आँखों के सामने खड़ी थी, बिल्कुल वैसी ही जैसे उसने उसे मरते वक्त देखा था—जख्मों से लथपथ, दर्द से कराहती हुई। रीना ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर जैसे जकड़ गए थे।
“मुझे माफ कर दो! मैं मजबूर थी! मैं कुछ नहीं कर सकी!” रीना ने कांपते हुए कहा।
दीप्ति की आत्मा ने एक ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, “तुम्हें उस वक्त मेरी मदद करनी चाहिए थी, रीना। अब समय बीत चुका है।”
रीना को अपनी गर्दन पर एक मजबूत दबाव महसूस हुआ, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसका गला घोंट रहा हो। उसने चीखने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज घुट कर रह गई। उसकी आंखों में आँसू थे, लेकिन दीप्ति की आत्मा ने कोई दया नहीं दिखाई। कुछ ही पलों में, रीना का शरीर निर्जीव होकर जमीन पर गिर पड़ा। अगले दिन अस्पताल में रीना की लाश मिलने से हड़कंप मच गया। डॉ. राघव और डॉ. कपूर के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था, लेकिन वे इसे नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने इसे एक ‘दुर्घटना’ का नाम दिया, लेकिन अंदर से वे जानते थे कि दीप्ति की आत्मा अब उनके पीछे है।
रीना की मौत के बाद, डॉ. कपूर बुरी तरह से डरे हुए थे। वे अस्पताल के उन हिस्सों में जाने से कतराने लगे, जहाँ उन्हें दीप्ति की मौजूदगी का अहसास होता था। लेकिन दीप्ति की आत्मा का बदला अधूरा था।
एक रात, जब डॉ. कपूर अपने केबिन में अकेले बैठे हुए थे, उनके सामने की लाइट अचानक बुझ गई। कमरे में घना अंधेरा छा गया। उन्होंने अपने मोबाइल की रोशनी से लाइट ठीक करने की कोशिश की, तभी उन्हें अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ।
“क…कौन है वहाँ?” डॉ. कपूर ने कांपती हुई आवाज़ में पूछा।
जवाब में, उन्हें दीप्ति की कराहती हुई आवाज़ सुनाई दी, “तुम्हें याद है, डॉ. कपूर, उस रात तुमने क्या किया था?” डॉ. कपूर का चेहरा सफेद पड़ गया। उन्होंने दीप्ति की आत्मा को देखा, जो धीरे-धीरे उनके करीब आ रही थी। उसकी आँखों में जलती हुई बदले की आग थी। “म…मुझे माफ कर दो। मैं कुछ नहीं कर सकता था,” डॉ. कपूर ने खुद को बचाने की कोशिश की।
“तुमने मेरी चीखें अनसुनी कीं, अब मैं तुम्हारी सुनने नहीं आई हूँ,” दीप्ति की आत्मा ने कहा।
दीप्ति की आत्मा ने अपने हाथ उठाए और डॉ. कपूर को जकड़ लिया। उनकी साँसें धीमी होती चली गईं, जैसे किसी ने उन्हें बाँध दिया हो। डॉ. कपूर ने छटपटाने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। उनकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और कुछ ही पलों में उनका दम घुट गया। अगले दिन, अस्पताल में डॉ. कपूर की लाश भी उसी कमरे में मिली। उनकी मौत के बाद, अस्पताल के स्टाफ में दहशत फैल गई। लेकिन डॉ. राघव अब भी अपने आपको सुरक्षित मान रहे थे। उन्हें लगता था कि वे बाबा कालेश्वर की मदद से बच सकते हैं।
अब डॉ. राघव और डॉ. वर्मा ही बचे थे। डॉ. राघव ने बाबा कालेश्वर से संपर्क किया, जिन्होंने दावा किया कि वे दीप्ति की आत्मा को काबू में कर लेंगे। बाबा ने कहा, “मुझे एक विशेष अनुष्ठान करने की अनुमति दें, जिससे आत्मा हमेशा के लिए शांत हो जाएगी।”
डॉ. राघव ने तुरंत बाबा को अस्पताल बुलाया। बाबा ने अस्पताल के एक कोने में एक बड़ा हवन आयोजित किया। चारों ओर आग की लपटें उठ रही थीं और बाबा मंत्रोच्चारण कर रहे थे। डॉ. राघव और डॉ. वर्मा अपने दिल में एक उम्मीद लिए बैठे थे कि शायद ये उनकी आखिरी उम्मीद हो सकती है।
लेकिन जैसे ही हवन शुरू हुआ, अचानक दीप्ति की आत्मा प्रकट हुई। उसकी उपस्थिति से आग की लपटें और भड़क उठीं। बाबा ने अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए आत्मा को बांधने की कोशिश की, लेकिन दीप्ति की आत्मा ने उसके सारे मंत्रों को तोड़ दिया।
“तुम मेरी आत्मा को बंधन में नहीं रख सकते, बाबा,” दीप्ति की आत्मा ने गुस्से में कहा। बाबा कालेश्वर ने आखिरी बार कोशिश की, लेकिन दीप्ति की आत्मा ने उसे पकड़ लिया और उसकी सारी शक्ति छीन ली। बाबा ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया, और डॉ. राघव और डॉ. वर्मा के चेहरे पर दहशत फैल गई।
अब सिर्फ डॉ. राघव और डॉ. वर्मा ही बचे थे। दीप्ति की आत्मा ने उन्हें घेर लिया और एक-एक कर उन्हें उनके पापों की याद दिलाई। डॉ. वर्मा ने घबराते हुए कहा, “हमसे गलती हो गई, दीप्ति। हमें माफ कर दो। हम नहीं जानते थे कि तुम इस तरह वापस आओगी।”
दीप्ति की आत्मा ने गुस्से में कहा, “तुम्हारी गलती ने मेरी जान ले ली। अब मैं तुम्हें वही दर्द दूँगी जो तुमने मुझे दिया था।”
दीप्ति ने डॉ. वर्मा को पकड़ लिया और उन्हें उसी तरह मार डाला जैसे उन्होंने उसकी जान ली थी। उनकी चीखें अस्पताल की दीवारों में गूंजती रहीं, लेकिन उन्हें बचाने कोई नहीं आया। अब डॉ. राघव अकेले रह गए थे। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की, लेकिन दीप्ति की आत्मा ने उनकी प्रार्थनाओं को अनसुना कर दिया।
“तुम्हें किसी भगवान से नहीं, मुझसे डरना चाहिए, डॉ. राघव,” दीप्ति की आत्मा ने कहा।
दीप्ति ने डॉ. राघव को उसी कमरे में खींचा, जहाँ उनकी हत्या हुई थी। उसने उन्हें उसी तरह तड़पाया, जैसे उन्होंने दीप्ति को तड़पाया था। अंत में, डॉ. राघव की दर्दनाक मौत हो गई। उनकी लाश के टुकड़े-टुकड़े हो गए, और दीप्ति की आत्मा को अंततः शांति मिली।
अस्पताल के सभी दोषियों के मारे जाने के बाद, सिटी हॉस्पिटल की सच्चाई सामने आई। पुलिस ने अस्पताल को सील कर दिया और सभी मरीजों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट कर दिया गया। अस्पताल में हुई घटनाओं की चर्चा पूरे शहर में फैल गई, और सिटी हॉस्पिटल को एक शापित जगह के रूप में देखा जाने लगा।
आईपीएस अर्जुन मेहरा, जो इस मामले की जांच कर रहे थे, उन्होंने दीप्ति की आत्मा को न्याय दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने दीप्ति के परिवार से वादा किया कि वह उनकी बेटी की मौत के पीछे के सच को उजागर करेंगे। और आखिरकार, अर्जुन की मेहनत और दीप्ति की आत्मा की मदद से, इस घिनौने अपराध का अंत हुआ। दीप्ति की आत्मा अब मुक्त थी, और सिटी हॉस्पिटल का अंधेरा भी खत्म हो चुका था। अन्याय कभी भी अनदेखा नहीं होता, और जिस आत्मा को शांति नहीं मिलती, वह अपने लिए न्याय की राह खुद बनाती है।
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