न्यायमूर्ति ( अतुकांत_कविता )
#अतुकांत_कविता*
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#न्यायमूर्ति*
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न्यायमूर्ति की गज भर लंबी जुबान
आजकल जब तब बहक जाती है,
कुछ का कहना है कि यह बुढ़ापे का असर है
जबकि कुछ को इसमें षड्यंत्र की महक आती है।
न्यायमूर्ति बूढ़े तो हो गए हैं
सफेद पके बाल
घनी मूँछें
फिर भी इच्छाएं कहां मरती हैं?
राज महल ,राजमुद्रा ,राजदंड और राज-सिंहासन
सभी को प्रिय लगता है ।
सभी चाहते हैं ,आदेश पारित करना
प्रजा पर शासन करना ।
न्यायमूर्ति के हृदय के भीतर कौन गया है ?
केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है
कि न्यायमूर्ति के भीतर कौन-सी आंधी चल रही है ?
बुढ़ापे की सनक है
या कोई कुटिल इच्छा पल रही है ।।
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451