” नौ दो ग्यारह “
संस्मरण
सन 2005 की बात है हमें नये घर में आये कुछ ही दिन हुये थे घर दो छोटे बच्चों का काम उपर से रसोई में रच – रच कर खाना बनाने का शौक एकदम थका डालता था , सोचा चलो मैं भी खाना बनाने वाली रख लेती हूँ अपने कुछ दोस्तों से और घर में जो काम करती थी उसको भी बोल दिया की कोई खाना बनाने वाली नजर में हो तो बताना । तीन – चार दिन बीते ही थे की एक दिन शाम को कोई गेट पीट रहा था बड़ा गुस्सा आया की कौन असभ्य इंसान है जिसको घंटी दिखाई नही दे रही है , बाहर गई तो देखा एक महिला खड़ी थी मेरे पूछने पर बोली की ” आपये के ईहाँ जो काम करती है उहे भेजी है खाना बनावे के वास्ते ”
मैने पूछा क्या – क्या बना लेती हो जवाब आया “सबै बना लेत हयी” मन ही मन मैं बहुत खुश चलो थोड़ा आराम तो मिलेगा अब आखिरी सवाल कितना लोगी पूछा मैने तपाक से बोली “हजार रूपया लेब” सोचा चलो रख लेते हैं , कल आने को बोल मैं अंदर आ गई ।
मन ही मन सोचने लगी कल क्या – क्या बनवाऊँगीं ये सोच रात में राजमा भीगा दिया बच्चों और पति को खाना खिलाया और सो गई , सुबह की चाय पी ही रहे थे की खाना बनाने वाली आ गई ( कल नाम मैने नही पूछा था ) आज पूछने पर उसने अपना नाम गीता बताया , मैं बोली गीता नाश्ते में पोहा बना दो तो गीता बोली “रसोई कहाँ हौ ?” मैं उसको रसोई की तरफ ले गयी गीता रसोई में पहुँच कर बोली “केमे पकाई ?” मैने गैस के चूल्हे की तरफ इशारा कर दिया और बोली गैस पे ये सुन गीता बोली ” ई कईसे जरी ? ” ये सुन मुझे कुछ समझ ही नही आया की ये बोल क्या रही है मुझे लगा शायद इसने लाईटर नही जलाया होगा मैने माचिस पकड़ा दी तो वो बोली ” ऐप्पे लकड़ी कैसे रखब ?” ओ तेरी के ये क्या कह रही है ये मैं बोली लकड़ी क्यों ? ये गैस का चूल्हा है तो गीता बोली ” हम त लकड़ी के चूल्हा पर खाना बनाइला ऐप्पे त हम नाही पकावे जानीला ” धड़ाम – धड़ाम – धड़ाम बिना आवाज के गीरी मैं और आश्चर्य के साथ हँसी फिर उससे बोली क्या सोच कर तुम हजार रूपए में खाना बनाने आई हो “हम त लकड़ी के चूल्हा पर दाल – भात , रोटी – तरकारी बनाईला बस” हैं ! तो कल क्या बोली थी तुम ये बोलती हुई मैं पति को बुलाने कमरे में गई और दोनो जब वापस आये तो देखा की गीता वहाँ थी ही नही तभी गेट खुलने की आवाज आयी मैं तेजी से बाहर गई तो देखा गीता ” नौ दो ग्यारह ” हो चुकी थी अंदर आ कर जब पति और बच्चों को बताया तो सब मिल कर खूब हँसे और आज भी इस बात पर हँसते हैं
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 26/05 /2019 )