नौनी लगै घमौरी रे ! (बुंदेली गीत)
जूड़ी-जूड़ी
बैहर चल रई
नौनी लगै घमौरी रे !
उठत भुंसराँ
कुहला पर रव,
सूरज दुफरै लौ जूड़े ।
धौर कें बाहर
धौर कें भीतर
हो रय बारे औ’ बूड़े ।
खाँसी चल रई
छींकें आ रईं
बँद-बँद जात दतौरी रे !
पतरी बुसकट
पैर भगुनियाँ
टिटकारत जावै ढुरवा ।
जाड़े में पथरा-
से हो गय
बिना पनैंओं के फरवा ।
गेरत जा रव
टलवा,नटवा
गैंएँ कल्लू, धौरी रे !
जरसी पैरें
छैल-छबीले
मोंड़ीं-मौड़ा बनयानें ।
काँछ लगी
धुतिया में बऊएँ
झारें घर,अँगना,सारें ।
मजबूरी में
कर रईं कर्री
गोरी काया कौंरी रे !
जूड़ी-जूड़ी
बैहर चल रई
नौनी लगै घमौरी रे !
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी