न्यूज़ एंकर
सोचने समझने की ताकत का
लगता है अपहरण हो गया है
जांचने परखने की ताकत का
लगता है विनिवेश हो गया है
जो न्यूज़ चैनल कह रहा है
बस हमें वही सही लग रहा है
क्या हो गया है हमको आज
लगता है विवेक हमारा मर गया है
वो तो एंकर नहीं, खुद को
जाने क्यों जज समझ बैठा है
प्रश्न पूछने के बजाय वो तो
कैसे कैसे निर्णय सुना बैठा है
अब तो समाचारों को भी वो
टीआरपी का सामान बना बैठा है
कोई फिक्र नहीं जनता की उसको
केवल विवादों को भुना बैठा है
चीखता है, चिल्लाता है मेहमानों पर
बस चैनल पर खुद ही बोलता रहता है
शीर्षक से ही साफ हो जाती है उसकी राय
विपरीत राय वालों को टोकता रहता है
मेहमान है तुम्हारे इन पर इतना मत चिल्लाओ
कोई समझाओ उसे अपना बीपी मत बढ़ाओ
वो भी कुछ कह देंगे तुम्हें अगर बुरा लगेगा
बिना बात, टीआरपी के लिए आंखें मत दिखाओ
पक्ष विपक्ष के चक्कर में क्यों पड़ते हो
बस अपनी ही राय सब पर क्यों थोंपते हो
सबको अपनी बात रखने का मौका दो
जो सहमत नहीं उसको ही क्यों रोकते हो।