नौकर
मालिक ने लिखाई का कार्य करने के बाद दवात जल्दी में फर्श पर ही छोड़ दी थी। नौकर रामू किसी काम से अंदर आया तो जल्दी में उसके पैर की ठोकर दवात पर लग गई।स्याही फ़र्श पर फैल गई। इतने में मालिक आ गये।रामू को डाँटते हुए बोले –“दिखाई नहीं देता तुम्हें, सुबह-सुबह सात रुपये का नुक्सान कर दिया,शर्म आनी चाहिए तुम्हें।स्याही के सारे पैसे तुम्हारी तनख्वाह में से काटूँगा।”रामू कुछ भी बोल नहीं पाया ।
आज फिर जल्दबाजी में मालिक दवात फर्श पर ही भूल गये थे।कमरे के अंदर आते समय उनका पैर दवात से टकरा गया।स्याही फर्श पर फैल गई।तुरंत रामू को बुलाया और बोले –“आज फिर नुक्सान कर दिया, तुमने फर्श से दवात को उठाया क्यों नहीँ? दवात क्या मैं उठाऊंगा? शर्म आनी चाहिए तुम्हें।नुक्सान के सारे पैसे तुम्हारी तनख्वाह में से काटूँगा।” रामू आज भी सिर झुकाए मालिक की डाँट सुन रहा था ।
— हरीश सेठी ‘झिलमिल ‘