नौकरी (१)
माना कि वक्त हो गया है
दिल ये सख्त हो गया है
फिर भी तुमको चाहता है
गलत है क्या?
माना मेरे हक में अभी तूं नहीं
दिल मेरा अब दिमाग के वस नहीं
फिर भी तुमको चाहता है
इसमें तो कोई शक नहीं
ये भी गलत है क्या?
मानता हूँ मेरे पास आने से डरती है तूँ
दूर से देखकर फिर क्यूँ हंसती है तूँ
तेरी यादों के सपनों मे खो जाता हूँ मैं
तन्हा रातों में आँखों को भिगोता हूँ मैं
ये भी गलत है क्या?
©अभिषेक पांडेय अभि