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1 Aug 2022 · 2 min read

नौकरी लग गई ( छोटी कहानी )

नौकरी लग गई ( छोटी कहानी )
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रमेश का चेहरा फिर उतरा हुआ था। जाहिर है, कहीं नौकरी के लिए इंटरव्यू में गया होगा और हमेशा की तरह निराश होकर लौटा होगा। रमेश की मां रमेश को दिलासा दे रही थीं।
रामबाबू ने जब यह दृश्य देखा तो उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े ।एम. ए .किए हुए रमेश को दो वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल पा रही थी।
गहरी सांस लेकर रामबाबू ने अपनी पत्नी यशोदा से कहा “आखिर कब तक मेरी पेंशन से घर का खर्चा चलेगा ? जब तक मैं हूं, तब तक तो खैर कोई बात नहीं लेकिन रमेश की नौकरी लगना बहुत जरूरी है। यह जो दो-चार ट्यूशन पढ़ा देता है इससे काम थोड़ी चलेगा? जिंदगी की गाड़ी तो किसी अच्छे काम धंधे में लगने के बाद ही ठीक प्रकार से चलती है ।”
“आप ठीक कह रहे हैं । लेकिन कहीं कोई नौकरी हो और मिल जाए, तभी तो गृहस्थी आगे चले । मैं तो सोच रही थी कि इसकी नौकरी लग जाए और हम फिर इसकी शादी कर दें और अपनी जिम्मेदारी से निवृत्त हो जाएं ।”यशोदा ने कहा।
” हां यह तो ठीक है ,लेकिन बस नौकरी लग जाए।”
तभी दरवाजे पर खट खट की आवाज आई -“डाक ले लीजिए”- यह डाकिए की आवाज थी।
रामबाबू बाहर गए । देखा, डाकिया लिफाफा हाथ में लिए हुए खड़ा था।
” यह लीजिए साहब ! आपका नियुक्ति पत्र है। नौकरी लग गई ।”
“नौकरी लग गई” ……यह शब्द रामबाबू ने तो सुने ही ,लेकिन उससे पहले यशोदा और रमेश ने भी सुने । दोनों दौड़कर दरवाजे पर डाकिए के पास आकर खड़े हो गए। रामबाबू के हाथ में लिफाफा था जिसमें नियुक्ति पत्र था। मुस्कुराहट के साथ डाकिए ने कहा” राम बाबू जी ! इसमें नियुक्ति पत्र है।… और यह बात मुझे इसलिए पता है कि आप ही के विद्यालय के दूसरे रिटायर्ड अध्यापक वर्मा जी भी हैं ,उनको भी ऐसा ही लिफाफा देकर आ रहा हूं । उन्होंने बताया था कि उनकी भी नौकरी लग गई है तथा पन्द्रह हजार रुपए महीना मिलेगा ।”
अपराधी की मुद्रा में रामबाबू ने लिफाफा खोला और पढ़ कर देखा तो उसमें लिखा हुआ था कि सरकार ने एक वर्ष के लिए पन्द्रह हजार रुपए मासिक पर उनको उसी विद्यालय में नौकरी पर रख लिया है, जहां से उन्हें पेंशन मिलती थी ।
रमेश और यशोदा गुमसुम खड़े थे। डाकिया समझ नहीं पा रहा था कि नौकरी लगने की खुशी में इनाम माँगू या न माँगू !
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लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1

Language: Hindi
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