नो बाइक डे( हास्य-व्यंग्य )
नो बाइक डे( हास्य-व्यंग्य )
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एक हमारा जमाना था कि डिग्री कॉलेज भी सब लड़के साइकिल पर ही जाया करते थे ।आज हाई स्कूल होते- होते सबके हाथों में बाइक, स्कूटर अथवा स्कूटी आ चुकी है । चार कदम पर अगर समोसे लेने के लिए भी जाना है तो बाइक पर ही जाते हैं । पैदल चलने का कोई सवाल ही नहीं रहा। साइकिल केवल वे लोग शहर में चलाते हुए दिखते हैं , जो गाँव से मजदूरी करने के लिए आते हैं । अन्यथा शहर के लड़के कोई भी साइकिल चलाते हुए नहीं दिखते। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि साइकिल की एक दिन ऐसी दुर्गति होगी।
सड़कों पर बाइकें दोनों तरफ ऐसे खड़ी रहती हैं, जैसे कब्जा करके सड़क पर धरना दे रही हों। एक दुकान के आगे जितनी लंबाई है, उसकी डबल बाइकें खड़ी रहती हैं। चार फीट जगह एक तरफ, चार फीट जगह दूसरी तरफ कुल मिलाकर आठ फीट का अतिक्रमण आम बात है । बेचारी रिक्शा ऐसे में सड़क पर से गुजरे भी तो कैसे गुजरे ! बाइक को खरोंच आनी नहीं चाहिए और पतली सी सड़क कहती है कि तुम ई रिक्शा हो, यहाँ से कैसे जा सकती हो ?
सप्ताह में एक दिन अगर ” नो बाइक डे ” घोषित हो जाए और उस दिन सुबह से शाम तक सड़क पर कोई भी बाइक नजर न आए तो विश्वास कीजिए यह अतिशयोक्ति नहीं है , लेकिन ऐसा लगेगा जैसे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है। कल्पना कीजिए बाजार खुले हैं । लोग आ जा रहे हैं लेकिन खड़ी हुई बाइक या चलती हुई बाइक दिन भर एक भी नजर नहीं आ रही है।
सबसे ज्यादा प्रदूषण इस समय बाइकों से हो रहा है । सबसे कम प्रदूषण अथवा शुन्य प्रदूषण ई रिक्शा से होता है । ई-रिक्शा क्योंकि बैटरी से चलती है इसलिए उसमें बिल्कुल भी धुँआ नहीं निकलता। बाइक धूल भी उड़ाती है ,साथ में धुँआ भी उड़ाती है।
बाइकों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अगर किसी स्थान पर एक मिनट खड़े हो जाओ तो सामने से साठ बाइकें इधर-उधर जाती हुई मिल जाएंगी।
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सभी लोग अच्छा मानते हैं । ई रिक्शा में एक अच्छाई यह भी है कि चार लोग बैठते हैं तो आपस में जान- पहचान हो जाती है, दुआ सलाम होती है, कभी-कभी खैरियत भी पूछ ली जाती है। बातचीत के सिलसिले आगे बढ़ते हैं और परिचय प्रगाढ़ हो जाता है । अनेक बार तो जान पहचान के ऐसे लोग जो कई साल से नहीं मिले, वह ई रिक्शा में मिल जाते हैं। देखते ही चेहरा खिल उठता है। पूछते हैं “और आप कैसे हैं ? “रिक्शा के माध्यम से छोटे स्तर पर मेल मिलाप बढ़ता है । बाइक में क्या है, सिवाय इसके कि बैठे और फटाक से चल दिए । रिक्शा उन सबके लिए है, जिनके पास कोई सवारी नहीं है।सर्वसाधारण की सवारी ई-रिक्शा ही है।
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में रिक्शा से दस- बीस रूपयों में कहीं भी चले जाओ।बाइक से केवल वही जा सकते हैं, जिनकी जेब में पचास हजार रुपए हैं। यद्यपि पचास हजार रुपए आजकल कोई बड़ी रकम नहीं होती लेकिन फिर भी बाइक सबके पास नहीं है । हर व्यक्ति बाइक चलाना जानता भी नहीं है । जो जानते भी हैं ,वह भी इस बात को समझते हैं कि जब ई रिक्शा उपलब्ध है तब उसका उपयोग करना ज्यादा समझदारी की बात है । कई लोगों को अगर कुछ सामान लेकर चलना है तब तो वे ई रिक्शा ही पसंद करेंगे । वृद्धावस्था में लोग बाइक पर चलना छोड़ देते हैं । जो बीमार हैं, वह भी बाइक का उपयोग नहीं करते। स्त्रियाँ आमतौर पर रिक्शा से ही जाती हैं।
बाइक के साथ में एक दिक्कत यह भी है कि उसे कहीं जाने के बाद खड़ी कहाँ करा जाए ? अगर लावारिस छोड़ दिया जाए तो गुमने का डर है । ज्यादातर स्थानों पर यह लिखा रहता है- नो पार्किंग । कुछ लोग लिख देते हैं -“अपनी बाइक की हिफाजत खुद करें “। अब यह समझ में नहीं आता कि आदमी अपनी बाइक की हिफाजत अगर खुद करेगा तो फिर भवन के अंदर जाकर अपना काम कैसे करेगा ? और अगर अपनी बाइक की हिफाजत ही भवन के बाहर खड़े होकर करता रहेगा तो फिर भवन के अंदर जाकर काम कैसे कराएगा ? केवल ई रिक्शा में ही यह संभव है कि आप ई रिक्शा से कहीं गए, अपना काम किया ,वापस आए , रिक्शा फिर पकड़ी और घर आ गए ।
इसलिए मेरा गंभीरतापूर्वक सुझाव है कि हफ्ते में एक दिन बाइक बंद हो जाएगी तो प्रदूषण भी कम होगा,बाइक का आकर्षण भी कम हो जाएगा। माँ- बाप को जो पचास हजार रुपए खर्च करके बाइक खरीदने का तनाव रहता है ,उसमें भी कमी आएगी । और सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि हमारी नौजवान पीढ़ी जो बाइक से उतरती ही नहीं है, कम से कम सप्ताह में एक दिन पैदल चलेगी अथवा ई रिक्शा पर भी बैठना सीखेगी ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 7615451