नोटबन्दी के समय …
पहले भी जनता भूखी थी पहले भी फाँके पड़ते थे
चोरी-छिनैती होती थी पहले भी डाके पड़ते थे
पहले भी शादी रुकती थी पहले भी बेटी रोती थी
पहले भी जनता की लाइन यूँ ही लम्बी होती थी
डर के सौदागर से पहले भी सारे जन डरते थे
तड़प-तड़प कर पहले भी जाँ जाती थी हम मरते थे
हमें बचाने का तुममें पहले था वो आक्रोश कहाँ
अम्मा के आँचल में तब बैठे थे तुम खामोश कहाँ
आन पड़ी खुद पर जो मुसीबत बात सजाने निकले हो
सुन लो प्यारे खुश हैं वो जिनको भड़काने निकले हो
आक्रोश तुम्हारे पर भड़का तो फिर परबन्ध नहीं होगा
चाहे जितनी कोशिश कर लो भारत बन्द नहीं होगा