नोटबंदी – वरदान या अभिशाप
आम जन हूँ नोटबंदी ने सताया मोदी जी
तारीख दस है पर पगार न पाया मोदी जी,
मन की बातों को बिछाता,ओढ़ता,खाता रहा हूँ,
पेट में है गैस वादों की सवाया मोदी जी,
फट चुकी तकदीर पैरों में बिवाईयों की तरह
पंक्तियों को द्रौपदी की चीर पाया मोदी जी,
नित कमाना, खर्च करना, लेना-देना रोकड़ा में
कैशलेस का क्यों बड़ा सा भ्रम फैलाया मोदी जी
आप की निज ईमानदारी पे है शंशय ह्रदय में
किसकी खातिर ये कहर हमपे है ढाया मोदी जी,
कैशलेस फिर – फिर करेगा पोषित पूंजीवाद को ही
होगी बटुए से निकासी कमीशन में जाया मोदी जी,
गन्दा कपड़ा मांगता है, जो देश सफाई के लिए
ऐसे कार्यपालकों पर क्यों, भरोसा जताया मोदी जी,
गढ़ी छवि, है पिघलती तासीर से दिनमान की
पाप तो चिल्लाएगा गर है छिपाया मोदी जी
स्वास्थ्य,शिक्षा,सड़क,पानी की अदद एक चाह है
आपने तो व्यक्ति पूजा को है बढाया मोदी जी,
ना ‘धवल’ लाइन में आया न आप जैसे नेतागण
बेबस दुल्हन का बाप क्यों है मौत पाया मोदी जी
अनूठे इस प्रयोग में क्या क्या गँवाया मोदी जी
देश पर हो ईश का अब वरद साया मोदी जी
प्रदीप तिवारी ‘धवल’
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