नोटबंदी की बरसी
नोटबंदी की बरसी
कौन कहता है नाकाम हुई
नोटबंदी इसने तो सफलता
के नये आयाम छू लिये
नोटबंदी ने जनता को
उसकी हद बतला दी थी
बूड़ा लाचार बीमार सबको
नानी याद करा दी थी
बैंक कभी जो ग्राहको के
आगे पीछे फिरते थे
ग्राहक अब उनके आगे
पीछे फिरता है
अच्छे दिन आये उनके
जिनको देने के लिए बैंको
के पास नही था पैसा अब
तो पैसा खूब है बैंक पैसा
देने ग्राहकों को घर जाते है
क्या हुआ यदि एन पी ए
बड़ता है कर्ज वसूली के
लिए जनता पर बैंक नये
तरीके अजमाते है
बूड़े अब चुस्त हो गये है
बचत कीमत कम होने से
बूड़े नौकरी करने जाते है
©पूरनभंडारी सहारनपुरी
मैं, (पूरन भंडारी ), स्वप्रमाणित करता हूँ कि प्रविष्टि में भेजी रचनाये नितांत मौलिक हैं, तथा मैं आपके इस काव्य रचना को प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करता हूँ, रचना के प्रकाशन से यदि कापीराईट का उल्लंघन होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी ।
पूरन भंडारी सहारनपुरी
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