Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Jul 2023 · 11 min read

#नैमिषारण्य_यात्रा

#नैमिषारण्य_यात्रा
संस्मरण/ यात्रा वृत्तांत
नैमिषारण्य-यात्रा
🪴🪴🪴🪴🪴
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
—————————————
मंगलवार 25 जुलाई 2023 रात्रि 12:30 बजे एक मिनी बस से मिस्टन गंज, रामपुर से हमारी यात्रा नैमिषारण्य के लिए आरंभ हुई। समूह में लगभग दो दर्जन व्यक्ति थे।
ठीक सुबह 5:30 पर हमारी बस नैमिषारण्य स्थित कालीपीठ चौक पर पहुंच गई। यहीं से पैदल का रास्ता पंडित राम नगीना त्रिपाठी (सरकारी पुरोहित) के मंदिर और धर्मशाला का था । मंदिर का नाम श्री संकट हरणेश्वर महादेव था । इसी की धर्मशाला में जो अभी हाल ही के आठ-दस वर्षों में बनकर तैयार हुई है, हम लोगों का ठहरने का प्रबंध रखा गया था ।
जब हम धर्मशाला में पहुंचे और मोबाइल से सोशल मीडिया पर संवाद स्थापित करना चाहा तो पाया कि नेटवर्क काम नहीं कर रहा है । यह स्थिति दिनभर बनी रही। इसका सकारात्मक लाभ यह निकला कि हम फेसबुक और व्हाट्सएप की आभासी दुनिया से कट गए और पूरी तरह नैमिषारण्य तीर्थ की दिव्यता में अपने आप को लीन करने में सफल हो पाए ।

चक्रकुंड
🍃🍃🍃🍂
पतली गलियॉं थीं ,जिन पर ई-रिक्शा चलती थी। एक कप चाय पी कर हम लोग चक्रकुंड के लिए निकल पड़े। चक्र कुंड जैसा कि नाम से स्पष्ट है, एक चक्राकार कुंड है । इस गोल कुंड की दो परिधियॉं हैं। पहली परिधि के भीतर प्रवेश निषेध है। संभवत इसका कारण यह है कि इस भीतरी परिधि में ही कुंड का स्रोत छुपा हुआ है, जो पाताल लोक तक जाता है अर्थात जिसकी गहराई को कभी नापा नहीं जा सका । दूसरी परिधि में जल भरा हुआ है। जल की गहराई लगभग साढ़े चार फीट की है। सब लोग इसी में नहाते हुए चक्र कुंड के एक से लेकर तीन या पॉंच तक चक्कर लगाते हैं। कंधों से थोड़ा नीचे तक पानी में शरीर डूबा रहता है । इस तरह सबके साथ का आनंद भी मिलता है और इतिहास को फिर से पुनर्जीवित करते हुए उसके महत्व के साथ स्वयं को जोड़ने की चेतना भी बलवती हो जाती है। चक्र कुंड की बाहरी परिधि में जितनी जगह है उसके हिसाब से पर्याप्त लोग नहाते हुए चक्कर लगा रहे थे। हमारा समूह भी आनन-फानन में कुंड में उतरने लगा । मुझे और मेरी पत्नी श्रीमती मंजुल रानी को कुंड में प्रवेश करने वाली सीढ़ियों पर फिसलन महसूस हुई तो मन आनाकानी करने लगा । कहीं पैर न फिसल जाए, इस डर से हम असमंजस में थे । लेकिन खैर रेलिंग की व्यवस्था थी, अतः उत्साह के वशीभूत ही सही; हम दोनों भी कुंड में उतर गए । भीतरी परिधि की दीवार को पकड़कर हमने कुंड का एक चक्कर लगाया और उसके बाद रेलिंग का सहारा लेकर कुंड के बाहर आ गए ।
मन ने ईश्वर से प्रार्थना की कि जब कुंड भारत के हजारों वर्ष के इतिहास को प्रतिबिंबित कर रहा है, तब इस प्रतिबिंब का जल पारदर्शी भी होना चाहिए। भव्य, स्वच्छ और सुंदर भी होना चाहिए अर्थात सीढ़ियों पर काई अथवा फिसलन लेश-मात्र भी जमी नहीं होनी चाहिए । कुंड के बाहरी हिस्से का जल संपूर्ण पारदर्शिता के साथ अपनी आभा से सबको आकृष्ट करने वाला हो, तो कितना अच्छा रहेगा !

चक्रकुंड के चारों तरफ कुंड में उतरने के लिए सीढ़ियां थीं। अच्छा-खासा चौड़ा संगमरमर का प्लेटफॉर्म था। उसी पर कुछ चौकियॉं रखी हुई थीं, जिन पर पुरोहितजन माथे पर चंदन का टीका लगाने के लिए तत्पर विराजमान थे । हमने टीका लगवाया तो वहॉं लिखा हुआ नैमिष तीर्थ का महत्व भी पढ़ने में आया :

प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले ।।

एक स्थान पर सुंदर चित्रकारी थी, जिसमें ऋषिगण वृक्ष के नीचे बैठकर अपने शिष्यों को ज्ञान प्रदान करते हुए चित्रित किए गए थे । भगवान शंकर का मंदिर भी कुंड के प्लेटफार्म पर ही स्थित था। आरती चल रही थी। हमने भी पूजा में हिस्सेदारी की। अंत में पुजारी जी ने हमारे गले में फूलों की एक सुंदर माला आशीर्वाद स्वरुप पहना दी, जो काफी समय तक हम पहने रहे। अंत में ई-रिक्शा से धर्मशाला लौटकर चाय और जलपान किया।

देवपुरी मंदिर
🍃🍃🍃🍂🍂🍃🍃🍃
कुछ देर समूह के सब लोगों ने धर्मशाला में अपनी सुस्ती उतारी और फिर चार या पॉंच ई-रिक्शाओं में बैठकर हम लोगों का समूह नैमिषारण्य के अद्भुत मंदिरों का भ्रमण करने के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले देवपुरी मंदिर में जाना हुआ । यहॉं पर देवी-देवताओं की 109 मूर्तियॉं अलग-अलग कोष्ठकों में स्थापित हैं। सरस्वती जी, गणेश जी, भगवान शंकर आदि के विविध रूपों को देख कर जहॉं एक ओर यह आश्चर्य हुआ कि इतनी सुंदर कृतियॉं बनाने में कितना समय लगा होगा और कितने धन की आवश्यकता हुई होगी, वहीं यह प्रसन्नता भी हुई कि एक ऐसी परिकल्पना जिसमें देवी-देवताओं के 109 स्वरूपों को एक ही परिसर में जीवंत रूप से प्रस्तुत कर दिया गया हो, सराहना और साधुवाद के योग्य ही कही जा सकती है। मंदिर में भूमि तल पर श्री राम दरबार का चित्र विशेष रुप से ध्यान आकृष्ट करने वाला था। मंदिर परिसर में चंदन आदि की मालाओं तथा विभिन्न प्रकार के उपहार योग्य वस्तुओं की कई दुकानें भी थीं । मंदिर के प्रवेश द्वार से मुख्य भवन के बीच काफी लंबा-चौड़ा खुला आंगन था। कुल मिलाकर साज सज्जा और भव्यता आकर्षक लगी ।

श्री तिरुपति बालाजी मंदिर वैखानस समाजम
🍃🍃🍃🍂🍂🍂
दूसरा मंदिर श्री बालाजी मन्दिर था। इसके मुख्य द्वार पर लिखा हुआ था : श्री तिरुपति बालाजी मंदिर वैखानस समाजम, आंध्र प्रदेश विजयवाड़ा। इसके प्रवेश द्वार पर सीढ़ियां चढ़ने के उपरांत प्रसिद्ध कथा वाचक श्री डोंगरेजी महाराज की भव्य प्रतिमा स्थापित थी। प्रतिमा पर डोंगरे जी का नाम नहीं लिखा था, अतः हमने पुष्टि करने के लिए मंदिर संचालकों में से ही किसी से पूछा कि यह प्रतिमा किसकी है ? तब उत्तर मिला, डोंगरे जी की है। मंदिर पर विभिन्न स्थानों में तेलुगु भाषा का प्रयोग किया गया था । इसका अभिप्राय यह है कि तेलुगु भाषी समाज नैमिषारण्य को एक पवित्र तीर्थ के रूप में मानते हुए यहां पर मंदिर निर्माण में रुचि ले रहा है। भीतर पूजा करते हुए दक्षिण भारतीय विधि विधान का उपयोग भी देखने में आया। दक्षिण भारत के मंदिरों के समान ही यहां पर गहरी चित्रकारी और चटकीले रंगों के प्रयोग से भवन की भव्यता का मनमोहक दृश्य देखने को मिला। सफाई अद्भुत थी। पुजारी लोग श्रद्धा पूर्वक आसन ग्रहण किए हुए बैठे तो थे, लेकिन सर्वसामान्य से दान लेने में छीना-झपटी तो थी ही नहीं बल्कि कहना चाहिए कि कोई रुचि भी नजर नहीं आई ।

श्री शक्ति धाम आंध्रा आश्रम
🍃🍃🍃🍃🍂🍂🍂🍂

तीसरा मंदिर श्री शक्ति धाम आंध्रा आश्रम नाम से स्थापित था। यहां जब हम गए, तो प्रवेश द्वार पर सफेद पत्थर की बहुत बड़ी मूर्ति भगवान की स्थापित हुई दिखी । आदमकद मूर्तियां तो सामान्य बात होती हैं लेकिन यह अत्यंत विशाल थी । विशेषता यह भी थी कि मूर्ति चमकदार सफेद रंग की आभा बिखेर रही थी। श्री शक्ति धाम में साफ-सफाई और भव्यता देखते ही बनती थी। यहां श्री गौरी विश्वेश्वर भगवान, श्री लक्ष्मी नरसिंह भगवान तथा श्री बाला त्रिपुर सुंदरी पीठ के गर्भगृह -मंदिर स्थापित हैं। इन के आगे के हिस्से में विशाल सुंदर हॉल है।

गोमती नदी के दर्शन
🍃🍃🍃🍃🍂🍂
अब हमारा अगला पड़ाव नैमिषारण्य स्थित गोमती नदी के दर्शन करना था। यह नदी ठहरी हुई प्रतीत हुई। प्रवाह न के बराबर था । हमारे समूह के एक सहयात्री ने बताया कि वह जब चालीस वर्ष पहले नैमिषारण्य आए थे, तब इस नदी में खूब प्रवाह देखने में आया था । अब पता नहीं प्रवाह समाप्त कैसे हो गया ? सड़क से नदी तक पहुंचने के लिए काफी सीढ़ियॉं चढ़कर तदुपरांत उतनी ही सीढ़ियां उतरकर थोड़ा चलने के पश्चात नदी तक हमारा पहुंचना हो पाया। हमारे सहयात्री ने स्मरण करते हुए कहा कि चालीस वर्ष पूर्व ऐसी कोई चढ़ाई-उतराई नहीं थी ।
नदी के तट पर कुछ पुरोहित विद्यमान थे, जो नदी-पूजन करा रहे थे । तट पर कुछ नवनिर्मित अथवा निर्माणाधीन कहें, तो कुछ भवन हैं,जिनसे लाउडस्पीकर से घोषणाएं चल रही थीं । ऐसा प्रतीत हुआ कि गोमती का तट कोई नया आकार लेने की दिशा में अग्रसर है तथा पूर्णता का आभास कुछ समय बाद ही देखने में आ सकेगा ।

हनुमान-गढ़ी
🍃🍃🍃🍃🍂

हनुमान गढ़ी नैमिषारण्य का एक प्रमुख आस्था का केंद्र है। यहां पर गर्भगृह में हनुमान जी की सिंदूर से सुशोभित विशालकाय मूर्ति है, जिसमें आंखें कुछ अलग ही चमक रही हैं । मूर्ति के समीप यह निर्देश लिखा हुआ था -“सिक्का अथवा प्रसाद फेंकना सख्त मना है।” इसका अभिप्राय यह है कि भक्तों को अनुशासन में रखने के लिए मंदिर प्रशासन को दिशा निर्देश जारी करने की आवश्यकता जान पड़ी । व्यवस्था की दृष्टि से कुछ न कुछ नियम तो बनाने की पड़ते हैं।

व्यास गद्दी
🍃🍃🍃🍂
व्यास गद्दी मंदिर, नैमिषारण्य की विशेषता यह है कि यहां पर मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने हजारों वर्ष तक भगवान की तपस्या की थी और उसके परिणाम स्वरूप भगवान ने उन्हें यह वरदान दिया था कि वह पुत्र के रूप में शतरूपा के गर्भ से जन्म लेंगे। परिणाम स्वरूप शतरूपा अगले जन्म में कौशल्या बनीं और कौशल्या के पुत्र के रूप में भगवान ने अवतार लिया । इस गाथा को मूर्तियों के माध्यम से व्यास गद्दी मंदिर में दर्शाया गया है। प्रमुखता व्यास गद्दी की है । अतः मंदिर में महर्षि वेदव्यास जी की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति अत्यंत भव्य है । इसी के साथ गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवत पुराण द्वितीय खंड पुस्तक भी हमें मूर्ति के समीप रखी हुई दिखाई दी ।
श्री शुकदेव जी की मूर्ति भी मंदिर में देखने को मिली। गर्भगृह में एक कक्ष व्यास गद्दी के लिए बनाया गया है। एक कक्ष में श्री राधा कृष्ण विश्ववास दर्शन नाम से भगवान का स्वरूप दर्शनों के लिए भक्तों को सुलभ कराया गया है । यह वही स्वरूप है जो मनु और शतरूपा को गहरी तपस्या के बाद देखने को मिला था।
शौनक ऋषि के ऐतिहासिक धर्म प्रसार कार्य को ध्यान में रखते हुए मंदिर में एक मूर्ति श्री शौनक जी महाराज की भी है। इससे व्यास गद्दी तीर्थ का महत्व और भी बढ़ जाता है। अठासी हजार ऋषियों को साथ लेकर श्री शौनक जी महाराज ने धर्म के मूल तत्व को चर्चा के द्वारा स्थापित किया था। व्यास गद्दी परिसर में शौनक जी को ऋषियों के कुलाधिपति लिखकर उचित ही सम्मान प्रदान किया है। यहां पर भी श्रीमद् भागवत को विशेष महत्व दिया गया है । मंदिर कक्ष में महारानी शतरूपा की आदमकद मूर्ति है। महारानी शतरूपा अपने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में किए हुए हैं । इसी के साथ ही स्वायंभुव मनु की आदमकद प्रतिमा भी हाथ जोड़ने की मुद्रा में स्थापित है। यह सब प्रवृतियां भारत के महान इतिहास और संस्कृति से श्रद्धालुओं को परिचित कराने की महान प्रवृत्ति है। जिसकी जितनी सराहना की जाए कम है।

ललिता देवी का मंदिर
🍃🍃🍃🍃🍃🍂
ललिता देवी के मंदिर में मां ललिता देवी की मूर्ति है। यहां पर भीड़ अच्छी खासी है। मंदिर परिसर बहुत विशाल तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन श्रद्धालुओं की संख्या को समेटने के लिए पर्याप्त है। जब हम इस मंदिर में पहुंचे तो श्रद्धालुओं का एक समूह कार्यक्रम संपन्न करने के उपरांत मेवा की खीर बांटने का पुण्य कार्य कर रहा था।

काली पीठ मंदिर
🍃🍃🍃🍃🍃🍂

कालीपीठ बनावट की दृष्टि से बहुत पुराना नहीं जान पड़ता। भवन सुंदर, आकर्षक और नवीनता लिए हुए है। मंदिर का मुख्य द्वार मुख्य सड़क के किनारे से आरंभ हो जाता है। संपूर्ण परिसर पक्की छत से ढका हुआ है। लंबी गैलरी के उपरांत मां काली की विशाल भव्य मूर्ति भक्तजनों को पूजन और दर्शन के लिए उपलब्ध होती है। मां काली देवी की मूर्ति के एक हाथ में राक्षस का कटा हुआ मुंड है। दूसरे हाथ में एक बर्तन है, जिस पर खून टपक रहा है। तीसरे हाथ में तलवार और चौथे हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं । सृष्टि में संहार की अपनी विशेष भूमिका होती है। कालीपीठ मंदिर इसी भूमिका को स्थापित करता है । दुष्टों का संहार ईश्वर की योजना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।
काली देवी के की प्रतिमा के निकट एक छोटा-सा चित्र रखा हुआ है, जिस पर लिखा है :- ब्रह्मलीन पंडित जगदंबा प्रसाद जी महाराज, प्रधान पुजारी शक्तिपीठ श्री ललिता देवी मंदिर, संस्थापक कालीपीठ, नैमिषारण्य।

गोमती कुंड
🍃🍃🍃🍃🍂

यात्रा के पड़ाव में एक स्थान गोमती कुंड पड़ा । इसकी विशेषता यह बताई गई कि इसमें फल चढ़ाने के बाद कुछ फलों को कुंड द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तथा जिन फलों को कुंड स्वीकार नहीं करता, वह ऊपर तैरते ही रह जाते हैं। हमने भी पांच फल चढ़ाए। केला और सेब नहीं डूबे।

दधीचि कुंड
🍃🍃🍃🍂🍂
मिश्रित तीर्थ दधिचि कुंड, नैमिशारण्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूजनीय स्थली है। यहां पर एक सुंदर कुंड स्थित है। कुंड तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं । दधिचि कुंड के संबंध में पूछने पर पता चला कि जब महर्षि दधीचि ने राक्षसों से लड़ने के लिए अपनी अस्थियां दान करने का निश्चय किया, तब इससे पूर्व उन्होंने सभी तीर्थों के जल में स्नान करने का भी विचार बनाया। लेकिन वज्र बनाने की क्योंकि जल्दी थी तथा ऐसे में समस्त तीर्थों का भ्रमण समय-साध्य कार्य था; इसे देखते हुए यह तय हुआ कि समस्त तीर्थों के जल को लाकर एक कुंड का निर्माण किया जाए । इसी प्रक्रिया में दधिचि-कुंड का निर्माण हुआ। यह कुंड सब तीर्थों के जल के महत्व से युक्त है। इसके साथ ऋषि दधीचि के सर्वस्व बलिदान करने की महान प्रेरणा भी निहित है ।इस कारण जो निर्मल भाव उत्पन्न होता है, वह संसार के किसी भी तीर्थ अथवा तीर्थ के जल में स्नान करने से प्राप्त नहीं हो सकता। इस तीर्थ का नाम मिश्रित भी इसीलिए पड़ा, क्योंकि इसमें सब तीर्थों के जल का मिश्रण है ।
हमारी बस जिस खुले मैदान में रुकी, उसके बाद जब समूह के सब लोग सड़क पार करके दधिचि कुंड परिसर की ओर जाने लगे, तब मेरी दृष्टि मैदान में एक विशालकाय पीपल के वृक्ष की ओर गई। जिस पर बड़ा-सा चबूतरा बना हुआ था और सफेद पत्थर पर कुछ लिखा हुआ था। मैं उत्सुकतावश दौड़कर उस पत्थर के पास गया। पढ़ा तो उस पर मोटे अक्षरों में लिखा था पिप्पलाद स्थल । आगे पढ़ा तो पूरा वर्णन इस प्रकार था :-
” महर्षि दधीचि के अस्थिदान के उपरांत उनकी पत्नी माता सुर्वचा वेदमती द्वारा काया त्याग के पूर्व गर्भस्थ शिशु का योग क्रिया द्वारा स्वयं से पृथक कर इस प्राचीन पीपल की छत्रछाया में रखा गया था। पीपल की एक डाल का दुग्धपान के कारण पालन-पोषण होने से शिशु का पिप्पलाद नामकरण हुआ। जीर्णोद्धार 23-4- 2015 ,वर्ल्ड दधीचि फाउंडेशन, जयपुर
अब यह स्पष्ट था कि यह केवल इसलिए पूजनीय वृक्ष नहीं है कि यह पीपल का है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसका संबंध भारत के हजारों वर्ष पुराने महर्षि दधीचि के बलिदान से जुड़ा हुआ है। हृदय नतमस्तक हो गया वर्ल्ड दधीचि फाउंडेशन जयपुर के प्रति, जिन्होंने इस अति प्राचीन पीपल के वृक्ष के महत्व को समझा तथा इसके जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाकर इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिकता को प्रेरणा के एक अक्षय स्रोत के रूप में भारत ही नहीं अपितु संसार के समस्त पर्यावरण प्रेमियों और त्याग वृत्ति के आराधकों के समक्ष स्थापित कर दिया।
दधिचि कुंड परिसर में ही बहुत सुंदर मंदिर भी बना हुआ है, जिसमें मूर्तियों के माध्यम से महर्षि दधीचि के द्वारा अस्थियों के दान दिए जाने तथा उन अस्थियों के दान से वज्र के निर्माण के बारे में प्रत्यक्ष रूप से समझाया गया है। अपने इतिहास को समझना और जानना प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। नैमिषारण्य पूजनीय स्थान है, लेकिन साथ ही साथ वह समस्त सुधीजन भी बधाई के पात्र हैं, जो इन स्थानों की पवित्रता और प्रेरणा को परिश्रम और आस्था के साथ संजोए हुए हैं। वास्तव में असली भारत यही है।
प्रातः भ्रमण मंडली,मिस्टन गंज, रामपुर भी बधाई की पात्र है जिसने नैमिषारण्य तीर्थ यात्रा का विचार बनाया और अपना समय तथा परिश्रम देकर यात्रा को सुंदर सुखद, आकर्षक और सुविधाजनक बनाया।
————अंत में प्रस्तुत है एक गीत—————–
——————————————————————
तीर्थ नैमिषारण्य भ्रमण, दर्शन पावन कर आए (गीत)
————————————–
तीर्थ नैमिषारण्य भ्रमण, दर्शन पावन कर आए
1)
हमने देखा चक्रकुंड, जिसकी महिमा है न्यारी
जुड़ी हुई पौराणिक युग से, इस की गाथा प्यारी
गहराई पाताल लोक तक, कौन नापने जाए
2)
मिश्रित सब तीर्थों के जल से, कुंड-दधीचि बना है
इसी क्षेत्र में पिप्पलाद, पीपल का वृक्ष घना है
गौरव के वृत्तांत सुशोभित, प्रतिमाओं ने गाए
3)
भॉंति भॉंति के मंदिर हैं जो, दैवी दृश्य सॅंजोते
वर्ष हजारों बीते लेकिन, यह महत्व कब खोते
देख-देख इन प्रतिमाओं को, सबके मन हर्षाए
4)
काली प्रतिमा मॉं काली की, सिंदूरी हनुमान की
मिली कथा मनु-शतरूपा के, तप पावन वरदान की
व्यास भागवत शौनिक ऋषि, कुछ भूले पृष्ठ सुनाए
तीर्थ नैमिषारण्य भ्रमण, दर्शन पावन कर आए
————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

350 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
अभिमानी सागर कहे, नदिया उसकी धार।
अभिमानी सागर कहे, नदिया उसकी धार।
Suryakant Dwivedi
1-	“जब सांझ ढले तुम आती हो “
1- “जब सांझ ढले तुम आती हो “
Dilip Kumar
"वेश्या का धर्म"
Ekta chitrangini
खुद पर भी यकीं,हम पर थोड़ा एतबार रख।
खुद पर भी यकीं,हम पर थोड़ा एतबार रख।
पूर्वार्थ
Jindagi ka kya bharosa,
Jindagi ka kya bharosa,
Sakshi Tripathi
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
विरक्ति
विरक्ति
swati katiyar
2393.पूर्णिका
2393.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
Rj Anand Prajapati
आदिम परंपराएं
आदिम परंपराएं
Shekhar Chandra Mitra
जब काँटों में फूल उगा देखा
जब काँटों में फूल उगा देखा
VINOD CHAUHAN
बसुधा ने तिरंगा फहराया ।
बसुधा ने तिरंगा फहराया ।
Kuldeep mishra (KD)
दोहा -
दोहा -
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
जीवन भी एक विदाई है,
जीवन भी एक विदाई है,
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
है हिन्दी उत्पत्ति की,
है हिन्दी उत्पत्ति की,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
खामोश अवशेष ....
खामोश अवशेष ....
sushil sarna
गरीबी में सौन्दर्य है।
गरीबी में सौन्दर्य है।
Acharya Rama Nand Mandal
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
अगर सड़क पर कंकड़ ही कंकड़ हों तो उस पर चला जा सकता है, मगर
अगर सड़क पर कंकड़ ही कंकड़ हों तो उस पर चला जा सकता है, मगर
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
गुजरे वक्त के सबक से
गुजरे वक्त के सबक से
Dimpal Khari
*माँ : दस दोहे*
*माँ : दस दोहे*
Ravi Prakash
"आज का विचार"
Radhakishan R. Mundhra
"आखिर में"
Dr. Kishan tandon kranti
एहसास
एहसास
Er.Navaneet R Shandily
तन पर हल्की  सी धुल लग जाए,
तन पर हल्की सी धुल लग जाए,
Shutisha Rajput
"तेरी यादों ने दिया
*Author प्रणय प्रभात*
ॐ
Prakash Chandra
Loading...