नैन सोम रस ग्लास
ढलते ही हर शाम के, बढती जाती प्यास ।
बन साकी आई निशा, नैन सोम रस ग्लास ।।
नैन सोम रस ग्लास, अधर मधुमय मधुशाला ।
अंग अंग प्रत्यंग, छलकती फेनिल हाला ।
इससे पहले काश, अधर अधरों से मिलते ।
खुली निगोडी नींद, उम्र को देखा ढलते ।।
रमेश शर्मा.