नैन फिर बादल हुए हैं
नैन फिर बादल हुए हैं ।
क्या निहारूँ फूल झरते
गंध को बेमौत मरते
लुट गए हैं पर्ण सारे
रंग भी काजल हुए हैं ।
नैन फिर बादल हुए हैं ।
छल कहाँ विश्राम लेते
दर्द आठों याम देते
मौनमुख कबतक न बोले
प्राण भी पागल हुए हैं ।
नैन फिर बादल हुए हैं ।
क्या मिला विष को पचाकर
कैर को चंदन बनाकर
क्षत रही वंशी हँसी की
हत सुखद मादल हुए हैं l
नैन फिर बादल हुए हैं ।
अशोक दीप
जयपुर
8278697171