नैनन छाए मेघ /
नैनन छाए मेघ
हृदय की
बारिश नहीं हुई ।
आना-जाना
लगा बराबर
माथे पर बादल का ।
गिरगिट जैसा
लगा बदलने
रूप-कोर-काजल का ।
कल तक तो
गुलमोहर खिले थे,
केशों के
विन्यास सजे थे ।
अब गालों पर
नागफनी-सी
चुभती नहीं सुई ।
उठना-गिरना
लगा बराबर
हाथों के बचपन का ।
उल्लू जैसा
लगा जागने
भाव किसी उलझन का ।
कल तक
आँखों में शराब थी,
कल तक हर
पँखुड़ी गुलाब थी ।
अब होंठों पर
मुरझाई-सी
उगती छुई-मुई ।
चलना-रुकना
लगा बराबर
पाँवों के वाहन का ।
बिच्छू जैसा
डंक मारता
गलियारा साजन का ।
भाव हृदय
का,सरस,सजल था,
कल तक मन
भी, स्वच्छ धवल था ।
अब इसकी
कालिख पर केवल
पुतने लगी छुई ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।