नैतिक शिक्षा का महत्व
आज के दौर में नैतिक शिक्षा अहम आवश्यकता है।हमारे समय में स्कूलों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य विषय के रुप में पढ़ाया जाता था।
ये नैतिक शिक्षा से दूरी का ही परिणाम है कि सबसे पहले हमारे ही घर परिवार में ही रनैतिकता का अभाव पनपने लगा है।संयुक्त परिवारों के बिखरने में भी। नैतिकता, सम्मान आदर भाव और सामंजस्य का अभाव बड़ा कारक बनकर उभरा है।आजकल के बच्चों में नैतिकता का अभाव इतना अधिक हो रहा है कि बच्चे बाबा, दादा,चाचा, काका,या अन्य बड़ों की बात छोड़िए, अपने माँ बाप तक की इज्ज़त नहीं कर
रहे हैं।आजकल तो बड़ो के पैर छूना तो जैसे खत्म हो रहा है।सच तो यह है कि अब नये माता पिता आधुनिकता में इतने रंग गये हैं कि वे चाहते ही नहीं हैं कि उनका बच्चा किसी के पैर छुए।यही नहीं वे परिवार में रहते हुए भी अपने बच्चों को बाबा, दादी या अन्य बड़ो से घुलने मिलने से बचाने तक का प्रयास करते हैं।
मेरा आशय किसी का दिल दुखाना नहीं है,पर क्या आप विश्वास करेंगे कि एक दम्पति ने माँ के साथ इसलिए रहना उचित नहीं समझा कि कहीं बुजुर्ग माँ यानी दादी के पास जाने से उनके बेटे को इंफेक्शन न हो जाय।और अलग कमरा ले लिया।पैसे का घमंड भी नैतिक मूल्यों के पतन का एक बड़ा कारण है।अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ माँ बाप। के साथ रहते हुए उन्हें अपना स्टैंडर्ड मेंटेन करने में दिक्कत होती है।लिहाजा वे घर से बाहर बीबी बच्चों के साथ चले गये।अब माता किस हाल में हैं,इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है।ऊपर से अगर कोई भाई आर्थिक रुप से कमजोर है,तब ये और जल्दी घर छोड़कर चले जाना चाहते हैं कि कहीं भाई को सहयोग न करना पड़ जाय।
सच्चाई यह है कि नैतिक शिक्षा के अभाव में परिवार ही नहीं समाज में भी अनेकों विकृतियां पनप रही है।
आपसी संबंधों में बढ़ती दूरियाँ, सामंजस्य का घटता अभाव,मर्यादाओं का गिरता स्तर,महिलाओं/बेटियों के साथ हो रही घटनाएं सब इसी का परिणाम है।
यदि इस पर तत्काल ध्यान न दिया गया तो हमारे समाज का ताना बाना बिखरने से नहीं बच सकेगा।पारिवारिक और सामाजिक सद्भाव बिगड़ने से समाज ही नहीं देश को भी मुश्किलों का सामना करने से कोई रोक नहीं पायेगा।
अतः पूर्व की भाँति नैतिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रुप में कम से कम इंटर तक तत्काल अनिवार्य किया जाना चाहिए।
✍ सुधीर श्रीवास्तव