नेह पाश
सौहार्द परस्पर रखो तुम
फूलों की तरह हँसते हँसते
नेह पाश हो जाओ तुम
आओ समीप कसते कसते।
नहीं तिक्तानुभव की रेखा हो
मुखमण्डल पर शोभित तेरे।
नहीं क्रोद्घ रश्मि संचार उठे
इन नयनों से कोमल तेरे।
है पुरुष प्रकृति संयोग यहाँ
यह पाश भी तो बस माया है
माया ही सत्य उसी का है
जो स्वयम को जान न पाया है।
हम पशुवत हैं सो पाश सही
पर पाश परम् सुख दाई हो
यह पाश हमारा मधुवट हो
यह पाश परम् फल दाई हो।
विपिन