नेह निमंत्रण
नेह निमंत्रण सजल नयन का ,क्यूँ मन समझ ना पाया
मौन मुखर होता है कब तक ,अब तक समझ ना आया !! १ !!
टूट चुकी मन की प्रतिमाएं ,प्रतिमाओं से जर्जर तन मन , तन मन की ये घुटन सह रहे , जाने कितने टूटे जीवन
जीवन के कुछ शोणित सपने ,सपनों में अपनों की तड़फन, तड़फन में टूटी आशाएं ,आशाओं में खोया तन मन
तन मन की वो क्रूर कराहें ,कंपित अधरों की वो लरजन ,लरजन से डूबी वो सिसकी ,जिसमे डूब चुकी है धड़कन
धड़कन में वो डूबी साँसें ,साँसों में आहों की सिहरन , सिहरन में सोई अभिलाषा ,अभिलाषा में आहें , क्रंदन
आहत आहों का अभिनन्दन क्यूँ मन समझ ना पाया
मौन …………………………………………………. !! २ !!
बीत चुके वो प्रीत भरे पल ,मन फिर ढूंढ रहा है प्रतिपल,पल पल में पलती इच्छाएँ ,पल पल चाह रही बीते पल
पलकों के वो स्वप्न भरे पल ,नयन सजाते है फिर प्रतिपल ,स्वप्न भरे नैनों की पलकें ,स्नेह सिक्त हो रही सजल
कहाँ लौटते वो मधुरिम पल ,वक्त कहाँ देता है अक्सर ,अवसर सुखद स्वप्न पाने का सपना हो जाता है हर पल
स्वप्न बन चुके मधुर पलों को ,बाँध अगर लेते जीवन में ,जीवन सुंदर सपना होता,जिसको जी भर जीते हर पल
आमंत्रण के उस अवसर को क्यूँ मन समझ ना पाया
मौन ……………………………………………………!! 3 !!