नेत्र सजल
कुछ चिर पुलकावनि
क्यों नेत्र सजल है जबकि तुम
समीप ही बैठी हो,,
साये सी बनी,,
छाया किये
फिर शीतल समीर क्यों कमजोर
कौन सी पीड़ा ह्रदय मुक्त .मृदुल स्पर्श
ऐसा तो नहीं तेरे श्रृंगार करने के पहले
विछोह के बादल
नीर बनकर
नेत्रों में उतर आया हो ‘
या अपरिमित खुशी अश्रु
बनकर बह रही हो ,,,