नेता बन जाऊं….!!
नेता बन जाऊं….!!
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सोचता हूँ मैं भी अब
नेता बन जाऊं
कुछ जुमले पढूं
कुछ वादे करूं
कारण; थोड़ा झूठ तो
मैं भी बोल हीं लेता हूँ
अपने तो अपने
गैरों के हृदय में भी
घर कर लेता हूँ
बची चोरी , हरामखोरी
उठाईगिरी, घुसखोरी
तो सब समय बता देगा
जैसी जो जरुरत
वक्त हमें सीखा देगा।
वैसे तो हम छोटे से छोटा
बवाल कर भी फस जाते है
वो बड़े से बड़ा घोटाला
करके भी
बेदाग बच जाते हैं
यहीं तमाशे देख- देख
हमने अब ठाना है
नेतागिरी को मैंने अपना
भावी भविष्य माना है
है तो यह काम
बहुत हीं मुश्किलों भरा
गिरगिट सा हरपल
रंग बदलना पड़ता है
कभी-कभी गैर तो गैर
अपनो से ही लड़ना पड़ता है
इस क्षेत्र में जाने को
कलाकार होना पड़ता है
अंदर से क्रिपीड़
बाहर से बड़े दिलवाला
सेठ साहुकार होना पड़ता है।
इसमें रोने की कला
खास होनी चाहिए
दूसरों के पास माल
उसे नीकालने का हुनर
सदा अपने पास होना चाहिये।
वादे करो भुल जाओ
फिर भी सब में घूल जाओ
यह भी एट कलाकारी है
कारण इस देश में जनमानस को
भुलने की एक खास बिमारी है।
भुलने से याद आया
कई घोटाले हमने भी देखे
जिसे हम भुल गये
चुनाव आते ही
कुछ पैसों के खातिर
उनके खिदमत में झुल गये।
अब तो बस एक ही चाह है
जल्द ही हम भी
नेता बन जाये
वर्ग-भेद के जुमले पढे
और जात धर्म चिल्लायें।
……..©®
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”