नेता हुए श्रीराम
जनता का धन लुट रहा है श्रीराम के नाम पर,
ना फैक्ट्री, ना कंपनी ना यूनिवर्सिटी के काम पर,
त्रेता में श्रीराम ने अपनी प्रजा से एक रुपया लूटा नहीं,
कलयुग में प्रजा को ठग रहे हैं भव्य मंदिर निर्माण पर,
घट-घट में तुम बैठे हुए हो, फिर भी तुम्हें स्थान दो,
जो सड़क पर बेघर पड़े हैं उन पर भी तो ध्यान दो,
आज मँहगाई क्या हो गयी है जीने के सामान की,
बेरोजगारी रूप ले रही नशे में झूमते युवान की,
स्वर्ण नगरी लंका को मार ठोकर,
ठोकर मार दी अयोध्या के तख्तोताज को,
स्वर्ण आभूषण उतारे मखमली वस्त्रों को त्यागकर,
धारण किए वस्त्र गेरुए और चल दिए वनवास को,
आज फिर किस की तमन्ना जाग उठी है आप में,
भव्य मंदिर-महल चाह रहे हो राज करने हिंदुस्तान में,
कण-कण में तुम्हारा वास है और कितना स्थान तुमको चाहिए,
शून्य भी बिन तुम्हारे अशून्य है और कितना अभिमान तुमको चाहिए,
झूठ, तमासे, अन्याय से बेहाल भारत देख लो,
फिर से रावण पैदा हो रहे हैं शेषनाग के नीचे देख लो,
दंगे फ़साद बढ़ रहे हैं प्रभु आपके ही नाम पर,
केवट,शवरी,सुग्रीव में जूते पड़ रहे हैं प्रभु आपके ही नाम पर,
लक्ष्मी चरणों में बैठी हुई है,
और कितना धन बैकुण्ठ में तुमको चाहिए,
ब्रह्मांड के तुम परम् ब्रह्म स्वामी हो,
फिर भी पृथ्वी पर राजनीति का एक तुच्छ सा मंदिर चाहिए..??
prAstya…… (प्रशांत सोलंकी)