नेता तिगड़मबाज
छल जनता को जीतते,चुनाव नेता आज।
ख़ुश हों चाहे राज से,गिरवी रखते लाज।।
नेता वो ही नेक है,रखता जनता ध्यान।
वो नेता गिरगिट लगे,करे स्वार्थ अभिमान।।
आँख चुरा ले जीत के,तोड़े जन विश्वास।
नेता बगुला-भक्त सम,कैसे आए रास।।
सच की दौलत नित बढ़े,रहती झूठ उदास।
पतझड़ चाहे कौन है,चाहें सब मधुमास।।
जन सेवा करता नहीं,नेता तिगड़म बाज।
वादे भूले जीत के,कम दिन का सरताज़।।
आर.एस.प्रीतम
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