नेता जी
* कुण्डलिया *
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नेता जी को प्रिय सदा, अपना इच्छापत्र।
और प्रचारित हर जगह, यत्र तत्र सर्वत्र।
यत्र तत्र सर्वत्र, हर जगह प्रथम सभी से।
मैं मेरा परिवार, करेगा मौज अभी से।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, कष्ट ही सब को देता।
और स्वयं आनंद, प्राप्त करता है नेता।
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खूब किया है देश में, जिसने भ्रष्टाचार।
वहीं शराफत ओढ़ कर, बन बैठे लाचार।
बन बैठे लाचार, जेल के अन्दर खोये।
फसल रहे हैं काट, बीज खुद ही थे बोये।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, पाप का साथ दिया है।
और देश का नित्य, अहित ही खूब किया है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०२/०५/२०२४