नेता जी
मन के अंदर मैल भरा, आभा जिनका मटमैला है।
मस्तक बड़ा और चमकदार, पर अंदर बैठा बैला है।।
चोर चोर का शोर मचा, खुश हो लो उसको बुरा लगेगा।
उसकी तो जीवन शैली यह, मौका मिलते पुनः ठगेगा।।
पाप पुण्य धर्म अधर्म की बात न तुम समझाओ उसको।
वह जितेंद्रिय है सबसे ऊपर अपनी बात बताओ उसको।।
रखता शासक सी सोच सदा पर कहता समाज का बेटा हैं।
कुछ प्रबुद्ध जन ठग कहते हैं पर जनता कहती की नेता हैं।।
जो अभाव को भाव से भर दे, पीड़ा हरता हो मीठी वाणी से।
शीशों को अपनी नजरों से काटे, काटे हर बात कुल्हाड़ी से।।
घटिया बढ़िया जनता के द्वारा, बस एक बार जब चुना गया।
धनी धर्मी विवेकी संत अरु राजा, सबके द्वारा वह सुना गया।।
वही है कर्ता वही है भर्ता, वह वक्ता सारा जग बस श्रोता है।
गुण अवगुण है कौन देखता, नेता जी जो कहते वह होता है।।
जै भारतीय लोकतंत्र