नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
नदी की धारा के अनुकूल भी बह सकता था
आई सी एस था बड़े चैन से रह सकता था
मगर न रास उसे आई गुलामी यारों
तभी तो दे रहा है मुल्क सलामी यारों
युवा दिलों में वो बनकर के ज्वार बैठे थे
ये था वो दौर कि गाँधी भी हार बैठे थे
छोड़कर स्वार्थ,सियासत चला गया था वो
मगर स्वतंत्रता की लौ जला गया था वो
देश के वास्ते तलवार उठाई उसने
एक राजा की तरह फौज सजाई उसने
उनकी तारीफ़ के हिटलर भी गीत गाता था
वो तानाशाह भी नेता उन्हें बताता था
करोड़ों देश के लोगों के दिल में रहता था
बोल जय हिंद सीना ठोंक कर के कहता था
गुलों से महकी हुई वादी तुम्हें मैं दूँगा
तुम मुझे खून दो आजादी तुम्हें मैं दूँगा
राज से कोई भी परदा उतार न पाया
अभी हैं ज़िंदा उन्हें वक्त मार न पाया
बागबाँ तेरे ही चरणों में चमन करता हूँ
वीर नेता जी तुम्हें दिल से नमन करता हूँ