नेता जी(हास्य रचना )
एक दिन नेता जी के पास आये दस निमंत्रण
शादी का बस एक था, बाकी थे लोकार्पण
नेता जी ने अपनी सेक्रेटरी को समझाया
सबका बाँटकर अलग अलग समय रखवाया
हर आयोजन में एक-एक घण्टे का अंतर था
सबसे आखिर में रक्खा शादी का नम्बर था
सुबह आठ बजे से नेता जी व्यस्त हो गए
फीतों को काटते भाषण देते पस्त हो गए
भारतीय समय का भी पूरा हुआ पालन था
अपने समय से लेट हुआ हर आयोजन था
नौ आयोजन करते करते बज गए ग्यारह
नेता जी के चेहरे पर बजने लगे बारह
आँखे नींद से बोझिल हुई जा रही थीं
बैठे बैठे जम्हाई पर जम्हाई आ रही थीं
यूँ थके हारे हुये वो पहुँचे शादी में जब
फेरे ले रहे थे वहाँ दूल्हा और दुल्हन तब
कुर्सी पर ही नेता जी अधलेटे होने लगे
दो मिनट में ही खर्राटें लेकर सोने लगे
जब नवयुगल आशीष लेने उनके पास आया
लोगों ने नेता जी को थोड़ा सा हिलाया
नेताजी ने धीरे से अपना सर ऊपर उठाया
नवयुगल का गठबंधन उनको फीता नज़र आया
झट जेब से कैंची निकाल बंधन काट डाला
देखकर ये सबके मुख पर लग गया ताला
मीडिया ने उड़ाई धज्जियां खूब हुये दंगल
नेताजी को भूल लड़ रहे थे आपस में सभी दल
बढ़ती ही चली गई उनकी बातों की गहराई
कीचड़ उछालकर एक दूजे पर खूब कराई हसाई
आज तो राजनीति भी जैसे रणनीति हो गई है
देश में बवाल कराना नेताओ की रीति हो गई है
31-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद