नेता और सैनिक
साहब, किसी नेता की गाड़ी का काँच तोड़ने से इतना बवाल क्यों मचा देते हैं। जब किसी सैनिक पर पत्थर फेके जाते हैं तो कहा छुप जाते हो??
पहला सवाल तो यही है कि वो नेता उस सैनिक के सामने क्या महत्व रखता हैं??
नेता, जनता के बीच झूठे वादे करने और फालतू का अपनत्व जताने के लिए गया हैं। वो लोगो के बीच उन्हें ही बेवकूफ़ बनाने जाता हैं। उसे सत्ता का लालच हैं तब जाकर भीख मांगता हैं वोट की।
परन्तु जब सेना के जवानों पर पत्थर फेंके जाते है तो कोई नहीं बोलता, यही नेता बस निंदा करके उसे राजनीति का मसला बनाते हैं। और अग़र सेना बचाव के लिए कुछ करे तो उन पत्थरबाजों के मानवाधिकारों का हनन हो जाता हैं, छोटे बच्चे अंधे हो जाते हैं। साहब, आप एक पल के लिए उन पत्थरबाजों के प्रति सवेदनशीलता प्रकट करते हैं जो आपके रक्षकों को मारते हैं, उन्हें गाली देते हैं, उनका सुरक्षा कवच छीन लेते हैं, उन्हें लात मरते हैं। और अगर वीर जवान कुछ करे तो जवानों पर मुकदमा दर्ज करवा देते हैं।
साहब, आप की राजनीति का कोई किनारा ही नहीं हैं।
सिर्फ लूटो और लुटाओ की राजनीति करते हो।
साहब, उनके बारे में भी सोच लिया करो जो कारवाँ चौथ के दिन बिना सर का सरताज देखती होंगी, जो राखी के दिन बिना हाथ का भाई देखती होंगी, जो जन्म दिन पर अपने बाप का मरा हुआ चेहरा देखते होंगे। यह बातें सुन कर हर कोई आंखे भर लेता होंगा मगर बोलता कोई नहीं हैं। परन्तु इनके नेताजी जो घोटाले, भष्टाचार, बेईमानी, झूठे वादे, धोखेबाजी जैसे काम करते हैं और अगर उन्हें कोई गाली तक दे या फिर उनकी कार का शीशा तोड़ दे तो पूरा शहर बन्द कर देते हैं।
अगर पत्थर का दर्द नेताजी को होता हैं तो पत्थर का दर्द वीर जवानों को भी होता हैं। और जब वो सीमा पर जहाँ तप्त रेत पर दुर-दुर तक पानी का घूट नसीब न होता, जहाँ बर्फ पर पैरो को ज़मीन नसीब न होती वहाँ पर खड़े होकर गोली खा सकते हैं तो नेताजी को अपने गलत कामों पर गाली खाने में कोई दिक़्क़त नही आई चाहिए।
–सीरवी प्रकाश पंवार
(एक कवी का कोई राजनेतिक दाल नहीं होता)