नेताजी की जय (हास्य-व्यंग्य)
नेताजी की जय
नेताजी ने माइक संभाल, हाँक लगाया
प्यारे सज्जनों, दुर्जनों व देवियों,
मेरे खातिर वोट बटोरने वाले
आला शातिर,वरेण्य समाजसेवियों।
विदेशी हाथों में मैं,
आप ही के खातिर बिका हूँ।
आप ही की कृपा से,
अबतक कुर्सी पर टिका हूँ।
चुनाव सामने है,
आप सब फिर दे मुझे दुहाई।
मेरे भैया,मेरे चच्चा,
मेरी बहना, मेरी माई।
पाँच वर्ष तक तो तभी मिलेगी
आपको भी सुख-चैन।
पानी की किल्लत कम कर दूँगा,
की पानी देंगे आपके नैन।
देख,सुन,परख लीजिये जनाब आप।
चुनाव चिन्ह मेरा-लाजवाब गिरगिट छाप।
मुहर लगाये इसी पर,
वरना वोटें भी होंगी बेकार।
आप वोट दें या न दें,
बनेगी मेरी ही सरकार।
जी हाँ, सुनियेगा मेरी बातें
जरा गौर से।
ये सुविधायें क्या मिल सकती,
आपको और से।
गुंजित कीजिये गोल गगन में,
अपने आर्तनाद।
नेताजी जिंदाबाद,नेताजी जिंदाबाद।
‘सुख-संपदा-ऐश्वर्य’,जनता के बीच समान रहे।
नेता बना रहूँ मैं,जबतक भू-ख विद्यमान रहे।
भूख,भूख उफ भूख, मेरे पल्ले सिर्फ भूख क्यूँ।
मेरे निधि नेताजी की,मेरे प्रति ये रुख क्यूँ।
एक सुशिक्षित पर निर्धन युवक ने मन में सोचा।
फिर जा मंच पर उसने,नेताजी को धर दबोचा।
सिट्टी पिट्टी गुम,
पर नेताजी उसे समझाने में हुए समर्थ।
अरे भू ख सिर्फ भूख नहीं
पृथ्वी आकाश भी तो इसका अर्थ।
नेता मैं हूँ,
भूख तो बातों से मैं मिटाता हूँ।
पढ़ा लिखा भले ही कम हूँ
पर शिक्षितों को भी पढ़ाता हूँ।
भू ख का सुन अर्थ अनर्थ
खुशियाँ उमड़ी जनता ठेठों में।
पर,आक्रोश का चरम तर्ज,
रईसों अरु धन्नासेठों में।
‘सुख-संपदा-ऐश्वर्य’ जनता के बीच समान रहे।
और नेताओं के हाथों में
शासन की सुनहरी कमान रहे।
तब तो हम गए, भला हम क्यों रईस,सेठ हुए।
ठेठ बराबर हमरे, तब तो हम उनसे भी हेठ हुए।
नेताजी कुछ समझ न सके,
अतः पीए से कुछ पूछा।
बोले”पैसे से पूर आप सब,
पर भेजे से पूरे छुछा।”
धन-समान का अर्थ यह तो नहीं
सबको धन हो समान-सा।
मैं भला कौन बदलनेवाला
व्यवस्था यह भगवान का।
जिसे जितना है,उतना ही रहे
धन समान का मेरा यह अर्थ।
दीन तो दीन रहेंगे ही,
रहेगा अलग यह वर्ग समर्थ।
प्रसन्न हो सेठों ने,नेताजी को
सोने के सिक्कों से तोला।
और वर्ग निर्धन का,
जय-स्तवन-वंदन शब्द बोला।
अति प्रसन्न हो नेताजी,
चुनावी दौरे से लौट आये।
और सरकारी कोष को
टी ए का बिल थमाए।
-©नवल किशोर सिंह